अभी तक कुंभकर्ण सहित अधिकांश राक्षस सेनापति युद्ध में मारे जा चुके थे। स्वयं रावण भी राम के हाथों अपमानजनक रूप से पराजित हो चुका था। वानर सेना द्वारा लंका नगर में हमला से स्पष्ट हो चुका था कि अब राक्षस शक्ति इतनी सक्षम भी नहीं रही गई थी कि अपने नगर की रक्षा कर सके। सुविधाजनक स्थिति में होने पर भी राक्षस हार रहे थे। इससे रावण अब अंदर से डर गया था। उसने अपने पुत्र मेघनाद को युद्ध में जाने और राम-लक्ष्मण को मार डालने का आदेश दिया। रावण ने अपने पुत्र की प्रशंसा कर उसका उत्साहवर्द्धन किया।
मेघनाद एक बार युद्धभूमि में जाकर राम-लक्ष्मण को नागपाश में बांध चुका था। दूसरी बार उसने युद्ध भूमि में जाकर अभिचारिक यज्ञ कर अदृश्य रूप से युद्ध किया। इस बार भी वह राम लक्ष्मण सहित बहुत से राम सैनिकों को मारा था और बहुत को घायल किया था। इस तरह उसने ही अभी तक राम सेना का सबसे अधिक नुकसान किया था। अतः रावण का उससे उम्मीद रखना उचित ही था। पर वह अब लंका का आखिरी सहारा भी था। अब लंका को समझ में आ चुका था कि युद्ध उन्होने जितना सोचा था उससे अधिक कठिन हो रहा था। इसलिए मेघनाद अब कोई असावधानी नहीं रखना चाहता था।
मेघनाद का युद्धभूमि में तीसरी बार जाना
इस बार भी मेघनाद यज्ञभूमि पर जाकर विधिपूर्वक हवन करने लगा। उसने आभिचारिक यज्ञ (किसी को मारने के लिए किया जाने वाला अनुष्ठान) शुरू किया। हवन समाप्त कर वह एक ऐसे रथ पर सवार हुआ, जो अदृश्य होने की क्षमता रखता था। समस्त दिव्य अस्त्रों के साथ अत्यंत क्रोधित होकर मेघनाद युद्धभूमि के लिए चला।
युद्धभूमि में आते ही मेघनाद ने बाणों की वर्षा कर दी। युद्धभूमि में वहाँ राम और लक्ष्मण भी थे। लेकिन वह उनकी दृष्टि से ओझल ही रह कर उन दोनों पर भी बाण चलाता रहा।
दोनों भाइयों ने भी उस पर अनेक बाण चलाए लेकिन ये बाण मेघनाद के शरीर को छू नहीं पाए। उसने अपनी माया से आकाश में इतना धुआँ और कुहरा कर दिया कि अंधकार छा गया। इस अंधकार में वह इस तरह विचरण कर रहा था जिससे न तो उसके धनुष का टंकार, न ही घोड़े के टाप या रथ के पहिए की आवाज सुनाई देती थी।
वह घूम-घूम कर तरह-तरह के अस्त्रों की वर्षा आकाश से कर रहा था। ऐसे में उसके होने के स्थान का पता ही नहीं लगता था।
लक्ष्मण द्वारा ब्रह्मास्त्र के प्रयोग का विचार, पर राम का उन्हे रोक देना
राम-लक्ष्मण अपनी ओर आते हुए अस्त्रों को काट देते थे, लेकिन मेघनाद का कोई नुकसान नहीं कर पाते थे। इस पर क्रोधित होकर लक्ष्मण ने राम से कहा कि वे अब समस्त राक्षसों का विनाश करने वाले दिव्य ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करेंगे।
लेकिन राम ने उन्हे कहा कि किसी एक के लिए सभी राक्षसों का वध उचित नहीं होगा। क्योंकि ऐसे मारने पर वे राक्षस भी मरेंगे जो युद्ध नहीं करते हो, भय से छिपे हो, पागल हो या शरण में आए हुए हो। ऐसे किसी का वध करना धर्म संगत नहीं होता। अगर मेघनाद का रथ दिख जाए तब फिर उसका जीवित रहना असंभव हो जाएगा।
मेघनाद का कुछ देर के लिए नगर में चला जाना
राम-लक्ष्मण जब इस प्रकार बातें कर रहे थे, तो मेघनाद उनके मन्तव्य को समझ गया। कुछ देर के लिए बाण वर्षा रोक कर वह नगर में चला गया। फिर उसे मारे गए राक्षसों की याद आई तो क्रोध बढ़ आया। वह बहुत बड़ी सेना लेकर नगर के पश्चिम द्वार से फिर युद्ध के लिए निकल आया। इस समय इस द्वार पर हनुमान अपने सैनिकों के साथ थे।
युद्ध भूमि में माया की सीता का वध
उसने माया की एक स्त्री, जो सीता की तरह दिखती थी, को अपने रथ पर बैठा रखा था। उसके रथ के चारों तरफ राक्षस सेना का विशाल घेरा था। इससे उस रथ पर पहुँच कर उस ‘सीता जैसी स्त्री’ को बचाना कठिन था। उस स्त्री के कारण वानर योद्धा उस रथ पर शिला, वृक्ष आदि फेंक कर भी नहीं मार सकते थे।
फिर भी हनुमान उसे कठोर शब्द कहते हुए अन्य वानर वीरों के साथ उसके रथ पर टूट पड़े। भयानक राक्षस सेना उन्हे रोक रहे थे। वह स्त्री रो रही थी। फिर सबके देखते-देखते मेघनाद ने उस स्त्री को केश पकड़ कर खींचा, पीटा और फिर तलवार से वैसे काट डाला जैसे यज्ञोपवीत (जनेऊ) पहनते हैं।
यह क्रूर हत्या देख कर सभी वानर सैनिक सन्न रह गए। वे विषादग्रस्त होकर युद्ध से विरक्त हो गए। मेघनाद यही चाहता था। वह अपने इस छल पर प्रसन्न होकर हर्षनाद करने लगा।
हनुमान द्वारा मेघनाद का प्रतिकार
यह भयंकर दृश्य देखने के बाद भी हनुमान कुछ देर युद्ध करते रहे। उन्होने मेघनाद के सैनिकों का भयंकर संहार किया। फिर राम और सुग्रीव के पास सीता वध की सूचना देने चल पड़े। ताकि उचित प्रतिकार किया जा सके।
राम-लक्ष्मण उत्तर द्वार के पास थे। पश्चिम द्वार की तरफ से युद्ध का घोर कोलाहल सुनाई दे रहा था। अतः राम ने हनुमान की सहायता के लिए जांबवान को अपने रीछ सेना के साथ पश्चिम द्वार जाने का आदेश दिया। लेकिन रास्ते में ही जांबवान को हनुमान आते हुए मिल गए। सीता वध का समाचार सुनकर राम कुछ देर स्तंभित रह गए। लक्ष्मण उन्हे समझाने लगे। तभी विभीषण भी वहाँ आ गए।
उन्हे जब इस समस्त घटनाक्रम का पता चला तो उन्होने सबको विभिन्न तर्कों से आश्वस्त किया कि सीता जीवित है। यह अवश्य ही मेघनाद की कोई चाल होगी। सब लोगों को यह बात सही लगी। अब सब मेघनाद के माया युद्ध का तोड़ निकालने के लिए सोचने लगे।
मेघनाद का रणभूमि से निकल कर निकुंभला देवी के मंदिर जाना
जब हनुमान राम से मिलने के लिए उत्तर द्वार की तरफ चले तो उन्हे राम के पास जाते देख कर मेघनाद होम करने की इच्छा से निकुंभला देवी के मंदिर में चला गया। उसे विश्वास हो गया था कि सामान्य तरीके से वह राम को जीत नहीं सकता था। अतः वह कोई विशेष शक्ति प्राप्त करना चाहता था।
विभीषण द्वारा मेघनाद की मृत्यु का रहस्य बताना
विभीषण मेघनाद की मृत्यु का रहस्य जानते थे। जब सब लोग उसके माया युद्ध से जीतने के उपाय पर विचार-विमर्श करने लगे तो उन्होने मेघनाद के मरने का रहस्य बताया। मेघनाद निकुंभला देवी के मंदिर (चैत्य प्रासाद, यह वटवृक्ष के नीचे चबूतरा की तरह का स्थान था) में जो हवन को करने के लिए गया था, अगर वह सफल हो जाता तो उसकी मृत्यु असंभव हो जाती। लेकिन अगर हवन सम्पन्न होने से पहले उसी स्थान पर उसे मार डाला जाय तब उसकी मृत्यु हो सकती थी।
अतः राम ने लक्ष्मण को मेघनाद वध के लिए निकुंभला देवी मंदिर जाने का आदेश दिया।
लक्ष्मण का मेघनाद को मारने के लिए निकुंभला देवी के मंदिर जाना
लक्ष्मण विभीषण, सुग्रीव, हनुमान, जांबवान इत्यादि योद्धाओं के साथ एक विशाल सेना लेकर निकुंभला देवी के मंदिर के पास पहुँचे। चैत्य स्थल को घेर कर मेघनाद की सेना खड़ी थी। दोनों सेनाओं में घोर युद्ध हुआ। हनुमान के नेतृत्व में वानर सेना ने राक्षस सेना का संहार कर दिया। सेना के संहार के विषय में सुनकर मेघनाद हवन पूर्ण किए बिना ही उठ कर युद्ध के लिए आ गया। सबसे पहले वह हनुमान से ही भिड़ गया।
निकुंभला देवी मंदिर के पास लक्ष्मण-मेघनाद में भयंकर युद्ध
लक्ष्मण ने मेघनाद को रोष पूर्वक ललकारा। लक्ष्मण के पास अपने चाचा विभीषण को देख कर मेघनाद का क्रोध और बढ़ गया। वह समझ गया कि उसकी मृत्यु का रहस्य विभीषण ने ही बताया है। उसने लक्ष्मण के साथ विभीषण को भी कटु शब्द कहा। वाक युद्ध के बाद लक्ष्मण और मेघनाद में घोर शस्त्र युद्ध शुरू हुआ। दोनों ही घायल होने के बावजूद घायल सिंह की तरह लड़ते रहे। मेघनाद रथ पर था। लक्ष्मण के लिए हनुमान ही उनके वाहन बन गए थे।
लक्ष्मण को युद्द में थके हुए देख कर विभीषण स्वयं मैदान में आ गए और राक्षस सेना पर प्रहार करना शुरू किया। उन्होने वानर सेना का मनोबल भी बढ़ाया। इसी बीच लक्ष्मण ने मेघनाद के सारथी को मार डाला। हनुमान ने भी लक्ष्मण को उतार कर युद्ध में भाग लेना शुरू कर दिया। राक्षस सेना से घिरे हुए जांबवान अपने रीछ सेना के साथ युद्ध कर रहे थे।
मेघनाद का कुछ देर के लिए युद्धभूमि से हटना
सारथी के मरने के बाद मेघनाद का उत्साह कुछ कम हो गया। उसे अब रथ भी संभालना पड़ता था और अस्त्र भी चलाना पड़ता था। तब तक वानरों ने उसके रथ के घोड़ों को भी मार डाला। अब दोनों प्रतिद्वंदी पैदल ही युद्ध कर रहे थे। लक्ष्मण के बाणों से मेघनाद बहुत घायल हो गया।
शाम हो गया। अंधकार छाने लगा। मेघनाद ने अपने सैनिकों से वानर सेना को तब तक रोकने के लिए कहा जब तक वह नगर में जाकर नया रथ लेकर आता। युद्ध करते-करते वह वहाँ से चकमा देकर निकल गया और नगर में चला गया। नए रथ, सारथी, हथियार आदि के साथ कुछ प्रमुख राक्षसों को लेकर मेघनाद फिर से युद्ध भूमि में आ गया। उसके इस फुर्ती को देख कर प्रतिद्वंद्वी योद्धा भी विस्मित रह गए।
लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध का दूसरा दौर
अब मेघनाद ने फिर से भयंकर युद्ध शुरू कर दिया। पर लक्ष्मण ने भी फुर्ती दिखाते हुए उसका धनुष काट डाला। उसने दूसरा घनुष उठाया। लक्ष्मण ने वह भी काट डाला। जब तक वह संभल पाता, तब तक लक्ष्मण ने पाँच बाण उसकी छाती में मार दिया। उसके सारथी को भी मार डाला। फिर भी घायल मेघनाद नए धनुष उठा कर बाण चलाता रहा। उसने लक्ष्मण को घायल कर दिया।
मेघनाद की मृत्यु
घायल होकर भी लक्ष्मण और मेघनाद दोनों योद्धा अद्भुत कौशल से युद्ध करते रहे। अंततः लक्ष्मण के बाण से मेघनाद का सिर कट कर जमीन पर गिर गया। इस तरह तीन दिन के भयंकर युद्द के बाद मेघनाद मारा गया।
उसके मरते ही वानर, देवता, ऋषि आदि आनंद से भर गए। अपने सेनापति के मारे जाने से घबड़ाए राक्षस विजय से उल्लासित वानर सेना की मार से जल्दी ही भाग गए। जयघोष करते हुए विजेता सैनिक भी राम के पास आ गए।
लक्ष्मण, विभीषण और वानर वीर जीत से उत्साहित तो थे लेकिन वे सब बहुत घायल हो गए थे। लक्ष्मण जब राम के पास पहुँचे तब तक उनके शरीर में बाण के टुकड़े बचे थे। खून बह रहा था। विभीषण को भी कई बाण लगे थे। राम के आदेश से सुषेण ने सबको औषधि दिया। औषधि के प्रभाव से सब जल्दी ही स्वस्थ हो गए।