ऐसा कोई वचन नहीं होने पर भी सीता ने तपस्विनी वेश क्यों लिया था?- part 16

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सीता और लक्ष्मण का राम के साथ वन जाना

राम की विमाता (सौतेली माता) कैकेयी ने दैव माया और अपनी दासी मंथरा के उकसाने पर अपने पति से दो वरदान माँगा। इन वरदानों को देने के लिए राजा वचनबद्ध थे। साथ ही उन्होने अपने सबसे प्रिय पुत्र राम की शपथ भी ले ली थी। इसमें दूसरा वरदान था तपस्वी वेश में राम को चौदह वर्षों तक वन में रहना। राम पिता की वचन के रक्षा के लिए स्वेच्छा से वन जाने के लिए तैयार हो गए।

जब यह बात उनकी पत्नी सीता को पता चली तो वे भी साथ जाने की पति से अनुमति माँगने लगी। राम ने उन्हे बहुत तरह समझाया लेकिन वे विनम्रता से उनके सभी तर्कों का खण्डन करने लगी। उन्होने यह भी बताया कि उनके मायके में एक साधू ने उनके लिए वनवास की भविष्यवाणी की थी, इसलिए वे मानसिक रूप से इसके लिए तैयार थी। सीता पति के बिना महल में रहने के लिए तैयार नहीं हुई। जब वह किसी तरह नहीं मानी तो राम को उन्हे साथ जाने के लिए अनुमति देनी पड़ी।

लक्ष्मण भी राम के बिना अयोध्या में रहने के लिए तैयार नहीं हुए। अंततः राम को उनको भी साथ चलने की अनुमति देनी पड़ी। 

माता कौशल्या और सुमित्रा से आज्ञा लेकर, विवाह के समय जनक जी द्वारा दिए गए दिव्य अस्त्र-शस्त्र लेकर और अपने सभी सेवकों आदि के लिए उचित आर्थिक व्यवस्था कर, प्रजाजनों से भरत को राजा मानने का आग्रह कर, पिता से विदा लेने के लिए राम, लक्ष्मण और सीता के साथ उपस्थित हुए।  

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इधर रानी कैकेयी के महल में दशरथ को शोक और मानसिक आघात से बार-बार मूर्च्छा आ रहा था। राम ने उन्हे बहुत तरह से समझाया।

राजा की यह हालत देख कर मंत्रियों, राजगुरु, अन्य स्त्रियाँ आदि बहुत लोगों ने रानी कैकेयी को अपना जिद छोड़ने के लिए फिर समझाया। कटु वचन भी बोले। लेकिन वह अडिग रही।

दशरथ द्वारा राम के साथ खजाना और सेना भेजने का आदेश और राम का इसे साथ लेने से अस्वीकार करना

इस पर राजा ने अगर राम वन में जाते तो उनके साथ सेना और खजाना भी भेजने का आदेश दिया, जिससे उन्हे वन में किसी प्रकार का कष्ट न हो। वरदान में राम को अकेले भेजने या खजाना आदि नहीं देने की बात नहीं थी। लेकिन राम ने स्वयं ही सेना या खजाना साथ ले जाना अस्वीकार कर दिया। क्योंकि वे वास्तविक अर्थों में तपस्वी की तरह रहना चाहते थे, जैसा की वरदान में मांगा गया था, न कि केवल दिखावे के लिए।

उन्होने वनवासी तपस्वी (जिस वेष में उन्हे वनवास में रहने का वरदान कैकेयी ने माँगा था) के लिए उपयुक्त वल्कल वस्त्र और अन्य वस्तुओं की माँग की। लेकिन किसी की हिम्मत नही हुई उन्हे ये वस्तुएँ देने की। तब कैकेयी ने स्वयं जाकर इन तीनों के लिए वल्कल वस्त्र ला कर उन्हे दे दिया।

राम-लक्ष्मण ने वहीं पिता और अन्य लोगों की उपस्थिति में ही अपने राजसी रेशमी वस्त्र उतार कर वल्कल वस्त्र पहन लिया। लेकिन सीता को तपस्विनी का यह वस्त्र पहनने नहीं आया। इसलिए राम स्वयं अपने हाथों से उनके रेशमी वस्त्रों के ऊपर से ही वल्कल वस्त्र बांधने लगे।

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यह देख कर वहाँ उपस्थित लोगों की आँखे भर आई। उन्होने राम से कहा कि सीता को तो वनवास नहीं दिया गया है। इसलिए उनके लिए वल्कल वस्त्र पहनना आवश्यक नहीं है और वह अपनी वर्तमान वस्त्र-आभूषण पहने ही जा सकती थी। उनलोगों ने फिर राम से अनुरोध किया कि सीता को अयोध्या में ही छोड़ दे।

लेकिन सीता अपने पति के अनुकूल ही वेष धारण करना चाहती थी। अतः उन्होने वह वस्त्र नहीं उतारा।

दशरथ द्वारा राम के लिए रथ का आदेश

राम को जाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ देख कर राजा दशरथ ने सुमंत्र से रथ लाने के लिए कहा ताकि उनके सुकुमार पुत्रों और पुत्रवधू को उनकी राज्य की सीमा तक पैदल नहीं चलना पड़े। उन्होने अपने खजांची से सीता के लिए इतने वस्त्र-आभूषण लाने के लिए कहा जितने वह चौदह वर्ष तक पहन सके। लेकिन राम इसके लिए भी तैयार नहीं हुए।

धर्म मर्मज्ञ राम वास्तविक अर्थों में वचन को निभाना चाहते थे। वे राज्य के किसी सीमावर्ती वन्य प्रदेश में रह सकते थे, जहाँ उनके सुख-सुविधा की सभी वस्तुएँ उन्हें अपने राज्य से मिल जाती। लेकिन वे ऐसा नहीं चाहते थे। इसलिए वे कोई भी वस्तु साथ नहीं ले जाना चाहते थे। लक्ष्मण और सीता भी उनके अनुरूप भी रहना चाहते थे। इसलिए इन दोनों ने भी तपस्वी का वेश और वैसा ही कठोर जीवन वनवास के दौरान बनाए रखा।

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