वरूण देव के रक्षकों द्वारा नंदजी को पकड़ लेना
एक बार की बात है। नंदजी ने कार्तिक शुक्ल एकादशी का उपवास किया और भगवान की पूजा की। उसी रात में द्वादशी लगने पर स्नान के लिए यमुना जल में प्रवेश किया। इस समय अधिक रात्री थी, जो कि असुरों का समय होता है। उस समय जल के देवता वरुणजी का एक सेवक असुर उन्हें पकड़ कर अपने स्वामी के पास ले गया।
इधर नन्द जी के जल में खो जाने से समस्त ब्रज में कोहराम मच गया। सभी गोप श्रीकृष्ण और बलरामजी के पास पहुंचे। श्रीकृष्ण समझ गए कि उनके पिता को वरुण का कोई सेवक ले गया है। अतः वे वरुण जी के पास गए।
नंदजी को वरुण लोक से लौटा लाना
जब लोकपाल वरुण ने देखा कि समस्त जगत के प्रवर्तक श्रीकृष्ण स्वयं उनके यहाँ आए हैं, तो उन्होने श्रीकृष्ण की पूजा अत्यंत विनयपूर्वक की। भगवान का दर्शन प्राप्त कर उन्हें बहुत हर्ष हुआ। उन्होने बड़े प्रेम और आनंद से उनकी स्तुति की और उनके पिता को लौटा दिया।
श्रीकृष्ण पिता के साथ ब्रज में लौट आए। नन्द जी ने वरुण लोक के ऐश्वर्य और अथाह संपत्ति को देखा। साथ ही यह भी देखा कि वहाँ के निवासी झुककर उनके पुत्र को प्रणाम कर रहें थे। उन्होने ब्रज में आकर इस विस्मयकारी घटना का वर्णन गोपों से किया।
गोपों को श्रीकृष्ण के स्वधाम का दर्शन
श्रीकृष्ण के प्रेमी गोप नंदजी के मुँह से यह वृतांत सुनकर यह समझ गए कि श्रीकृष्ण तो स्वयं भगवान हैं। उनके मन में लालसा जगी कि क्या कृष्ण कभी उनपर भी इतनी कृपा करेंगे कि उन्हें अपने मायातीत स्वधाम, जहां केवल उनके प्रेमी-भक्त ही जा सकते है, का दर्शन देंगे।
सर्वदर्शी श्रीकृष्ण से गोपों की यह अभिलाषा छिपी नहीं रही। उन्होने उनकी यह अभिलाषा पूर्ण करने का निश्चय किया। जिस जलाशय में आगे चल कर उन्होने अक्रूर को अपना स्वरूप दिखलाया था, उसी ब्रहमस्वरूप ब्रह्म नद में वे उन गोपों को ले गए। उनकी प्रेरणा से सभी ने उस जल में डुबकी लगाई। श्रीकृष्ण ने उसमें से निकल कर सबको अपने परम धाम का दर्शन कराया। उस दिव्य लोक को देख कर नन्द आदि सभी गोप परमानंद में मग्न हो गए, वहाँ उन्होने देखा कि सारे वेद मूर्तिमान होकर भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति कर रहें हैं। यह देख कर वे सब अत्यंत विस्मित हो गए।