प्रलंबासुर द्वारा कृष्ण-बलराम के अपहरण का प्रयास
एक दिन जब बलराम और श्रीकृष्ण ग्वाल बालों के वृंदावन में गाय चरा रहे थे तब ग्वाल के वेश में प्रलंब नाम का एक असुर आया। उसका उद्देश्य कृष्ण और बलराम का अपहरण कर ले जाना था। सर्वज्ञ भगवान उसे देखते ही पहचान गए। फिर भी उन्होंने उसकी मित्रता का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। वे मन-ही-मन उसके वध की युक्ति सोच रहे थे।
कृष्ण द्वारा खेल का निर्णय
कृष्ण ने प्रलंबासुर का उद्देश्य जानते हुए उसे अपना काम करने का अवसर देने के लिए एक खेल खेलने के लिए सभी ग्वालबालों को कहा। इस खेल में सभी ग्वालबाल दो दलों में बैठ जाते। दोनों दल के नायक दोनों भाई थे। दोनों दलों ने बहुत से खेल खेला। एक खेल ऐसा था जिसमे जीतने वाले दल के सदस्य को हारने वाले दल का सदस्य अपनी पीठ पर चढ़ा कर ले जाता था।
प्रलंबासुर द्वारा बलराम जी का अपहरण
प्रलंबासुर जानता था कि वह श्रीकृष्ण को नहीं हरा पाएगा इसलिए वह बलराम जी के दल में शामिल हो गया था। इस खेल में एक बार बलराम जी के दल ने जीत लिया। श्री कृष्णा जी के दल के सदस्यों को उनके दल के सदस्यों को अपनी पीठ पर चढ़ा कर एक निश्चित स्थान तक ले जाना था। इस खेल में श्री कृष्ण ने श्रीदामा को और प्रलंबासुर ने बलराम को अपनी पीठ पर चढ़ाया।
प्रलंबासुर बलरामजी को निश्चित स्थान पर उतारने के बदले उन्हें लेकर चला गया।
प्रलंबासुर का वध
बलरामजी को वह राक्षस ले कर चला तो गया लेकिन उनके भार को वह अधिक समय तक संभाल नहीं सका। इसलिए उसने अपना असली असुर वाला भयंकर रूप प्रकट किया और उन्हे लेकर आकाश में उड़ गया।
बलराम जी ने क्रोधित होकर एक घूँसा उसके सिर पर दे मारा। इस प्रहार से उसका से उसका सिर चूर-चूर हो गया और उसके मुँह से खून निकलने लगा। उसकी चेतना जाती रही और वह प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। जब ग्वालबालों में देखा कि बलराम जी ने प्रलंबासुर को मार डाला तब उनके आश्चर्य की सीमा न रही।