पूतना वध
कृष्ण जन्म का एक उद्देश्य था अत्याचारी राक्षसों का अंत करना। इस कार्य का आरंभ किसी पुरुष राक्षस से नहीं बल्कि एक स्त्री यानि राक्षसी पूतना के वध से हुआ। वे स्त्री वध नहीं करते लेकिन जब पूतना स्वयं ही उनका वध करने आ गई तो इस बाल घातिनी को उसके कर्मों का परिणाम देना ही उचित होता। प्रसंगवश रामावतार में ही राक्षस वध का कार्य एक राक्षसी ताड़िका के वध से ही शुरू हुआ था।
श्रीकृष्ण की मुश्किले तो उनके जन्म से पहले ही शुरू हो चुकी थी। जन्म के तुरंत बाद से ही, जब वे नवजात शिशु थे, उनकी हत्या के लिए अनेक प्रयास हुए। पूतना और तृणावर्त क्रमशः पहले दो राक्षस थे, जिन्होने कृष्ण की हत्या करने के प्रयत्न किया। पर उनके हाथों स्वयं ही मारे गए।
पूतना वध की पृष्ठभूमि
श्रीकृष्ण जन्म के बाद वसुदेवजी भगवान की आज्ञा अनुसार उन्हे गोकुल में नन्द जी के घर पहुँचा आए और नन्द जी की पुत्री को ले आए। गोकुल में नन्द बाबा के घर पुत्र जन्म की खबर सुनते ही समस्त गोकुल में खुशी की लहर दौड़ गई। नंदबाबा ने अत्यंत उत्साह से वेदज्ञ ब्राह्मणों को बुला कर स्वस्ति वाचन और अपने पुत्र का जातकर्म कराया। उन्होने देवताओं और अपने पितरों का पूजन करवाया और ब्राह्मणों को विविध वस्तुओं का दान दिया। समस्त नगर सजाया गया। नगर वासी ग्वाले, गोप और गोपियाँ नवजात शिशु को आशीर्वाद देने सज-संवर कर और भेंट देने के लिए तरह-तरह की सामग्री लेकर आने लगे। तरह-तरह से उत्सव मनाए जाने लगे।
नंदजी का मथुरा जाना
श्रीकृष्ण जन्म के कुछ ही दिनों बाद नन्द जी गोकुल की रक्षा का भार दूसरे गोपों को सौंप कर कंस का वार्षिक कर चुकाने के लिए मथुरा गए। कर चुकाने के बाद जब वह वहाँ रुके हुए थे तब वसुदेव जी उनसे मिलने आए। योगमाया की चेतावनी के बाद कंस ने देवकी-वसुदेव को कारागार से मुक्त कर दिया था। नंदबाबा और वसुदेव जी दोनों बड़े ही प्रेम और आदर से मिले और एक-दूसरे का हालचाल जाना।
बातचीत के बाद वसुदेव जी ने नन्दबाबा से कहा कि अब मथुरा मे उनका कार्य सम्पन्न हो चुका था इसलिए उन्हें गोकुल निकलना चाहिए क्योंकि गोकुल में आजकल बड़े उत्पात हो रहे थे। अभी तक नन्द जी को यह पता नहीं था कि उनके पुत्र वास्तव में वसुदेव जी के पुत्र थे। लेकिन वसुदेव जी तो यह जानते थे। उन्हें अपने दोनों पुत्रों के सुरक्षा की चिंता था। वसुदेव जी की बातों से नंदजी को भी किसी अनहोनी की आशंका होने लगी। वे उनसे अनुमति लेकर शीघ्र ही गोकुल के लिए विदा हुए।
गोकुल में पूतना द्वारा कृष्ण को मारने का प्रयास
इधर गोकुल में वसुदेव जी की आशंका सत्य हो रही थी। कंस की मित्र राक्षसी पूतना, जिसमें अपना रूप बदलने और आकाशमार्ग में चलने की शक्ति थी, गोकुल में गोपों के बच्चों को मार रही थी। नन्द भवन में उत्सव से उसे वहाँ बच्चा पैदा होने का पता चल चुका था। अतः जब नन्द जी मथुरा में ही थे, पूतना ने उनके नवजात पुत्र कृष्ण को मारने के प्रयत्न किया।
पूतना एक सुंदर युवती का रूप बना कर नन्द बाबा के घर गई। उसका रूप देख कर यशोदा, रोहिणी और अन्य सभी गोपियों ने उसके साथ मित्रवत व्यवहार किया। पूतना ने सोए हुए बालक श्रीकृष्ण को अपना विषैला दूध पिलाने कर मार डालने की नियत से अपनी गोद में उठा लिया।
गोद में उठाते समय श्रीकृष्ण ने अपनी आँखे बंद कर ली थी। उनके आँखें बंद करने की विद्वानों ने कई तरह से व्याख्या किया है।
पूतना का वध
भगवान दूध के साथ जब उसके प्राण भी पीने लगे तो पूतना पीड़ा से चीखने लगी और भगवान को अपने से अलग करना चाहा लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी।
अत्यधिक पीड़ा होने के कारण पूतना अपना असली रूप छुपाए नहीं रख सकी। वह अपने भयंकर राक्षसी रूप में प्रकट हो गई और बाहर आकर मर कर गिर गई।
गिरते समय उसका शरीर इतना विशाल हो गया कि इससे छः कोस के भीतर के वृक्ष दब कर कुचल गए। घबराई हुई गोपियाँ जब उसके पास गई तो देखा की शिशु श्रीकृष्ण निर्भय हो कर पूतना के मृत शरीर की छाती पर खेल रहे थे।
गोपियों ने कृष्ण को जल्दी से उठाया और उनकी नजर उतारने के लिए तरह-तरह के उपाय किया और भगवान से उनकी रक्षा के लिए प्रार्थना की। यशोदाजी ने दूध पिला कर उन्हें पालने मे सुला दिया।
इसी बीच नंदबाबा मथुरा से लौट कर आ गए। पूतना के मृत शरीर को देख कर वे आश्चर्यचकित रह गए। उन्हे इस बात के लिए भी आश्चर्य हुआ कि जैसा वसुदेव जी ने कहा था वैसा ही हुआ।
पूतना का शरीर बहुत बड़ा था और उसे समस्त ले जाना संभव नहीं था, इसलिए ब्रजवासियों ने उसके मृत शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर, गोकुल से दूर ले जाकर लकड़ियों पर रख कर जला दिया। उसके जलते हुए शरीर से अगर की तरह सुगंध आ रहा था। चूँकि भगवान ने उसका दूध पिया था, भले ही उसने उन्हे मारने की नियत से दूध पिलाया था, फिर भी उसे परमगति मिली।