राम-रावण युद्ध समाप्त हो गया। देवता आदि ने राम को युद्ध में जीत पर बधाई दिया और रावण के भय से मुक्त करने के लिए उनका धन्यवाद किया। लंका के सिंहासन पर विभीषण का राज्याभिषेक हो गया। सीता को विभीषण आदर के साथ राम जी के पास ले आए।
इंद्र द्वारा युद्ध में मरे हुए वानर-भालुओं को जीवित करना
देवराज इन्द्र ने राम के कहने पर युद्ध में मरे हुए वानर भालुओं को जीवित कर दिया। इसके बाद सभी देवता अपने-अपने लोकों को चले गए। राम ने समस्त सेना को विश्राम करने की आज्ञा दिया। उस रात राम सहित सबने विश्राम किया।
विभीषण द्वारा आतिथ्य का आग्रह
अगले दिन विभीषण सबके लिए बहुत से उपहार लेकर आए और सबको स्नान कर शृंगार करने के लिए आग्रह किया। उन्होने राम से कुछ दिन उनके यहाँ रुक कर आतिथ्य ग्रहण करने का भी आग्रह किया।
राम ने उन्हे सुग्रीव आदि को स्नान कराने के लिए कहा। लेकिन स्वयं लंका नगर में नहीं गए। उन्होने विभीषण द्वारा लाए गए उपहार में से दूर्वा, दहि, अक्षत (चावल) जैसे मंगल चीजों के अलावा और कोई चीज नहीं लिया।
विभीषण ने राम की आज्ञा के अनुसार सभी वानरों का विशेष सत्कार किया और उन्हे उपहार दिया। इसके बाद राम ने सभी वानरों को जाने की आज्ञा दिया।
अयोध्या जल्दी पहुँचने की चिंता
अब राम के वनवास की अवधि समाप्त होने वाली थी। लेकिन वे अयोध्या से बहुत दूर थे। भरत जब उनसे मिलने चित्रकूट आए थे तो उन्होने यह प्रतिज्ञा की थी कि यदि राम वनवास की अवधि के बाद के पहले दिन अयोध्या नहीं पहुँचेंगे तो वे अपने प्राण त्याग देंगे। इसलिए अब राम जल्दी-से-जल्दी अयोध्या पहुँचना चाहते थे।
अतः उन्होने विभीषण के आतिथ्य के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए जल्दी-से-जल्दी अयोध्या जाने का उपाय पूछा। इस पर विभीषण ने रावण द्वारा कुबेर से छीन कर लाए गए पुष्पक विमान द्वारा अयोध्या जाने का सुझाव दिया। यह विमान अत्यंत तीव्र गति से उड़ सकता था। इसका आकार-प्रकार आवश्यकतानुसार बढ़-घट सकता था।
विभीषण और वानर यूथपतियों का राम के साथ जाना
राम जब सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान से अयोध्या जाने लगे तो विभीषण ने उनका राज्याभिषेक देखने के लिए उनके साथ चलने की अनुमति मांगी। अन्य वानर मित्रों की भी ऐसी ही इच्छा थी। राम ने प्रसन्नता के साथ विभीषण, सुग्रीव और सभी वानर यूथपतियों के अपने साथ अयोध्या चलने के लिए आग्रह को स्वीकार का लिया।
उस रात विश्राम करने के बाद सभी पुष्पक विमान से अयोध्या के लिए चलें।
सीता द्वारा वानर पत्नियों को अयोध्या ले जाने का विचार
रास्ते में राम सीता को उन सभी स्थानो को दिखाते जा रहे थे, जहाँ वे रुके थे, या कोई कार्य किया था। जब वे सब किष्किंधापुरी के पास आए तो सीता ने अपने साथ सुग्रीव तथा अन्य वानर प्रधानों की पत्नियों को भी ले चलने की इच्छा प्रकट किया। उनकी इच्छा के अनुसार विमान किष्किन्धा पुरी में रुका। वहाँ एक दिन रुकने के बाद उनकी स्त्रियों के साथ अगले दिन सब आगे चले।
भारद्वाज मुनि से भेंट और मुनि का अद्भुत आतिथ्य
अयोध्या से आते समय राम प्रयाग में रुक कर राम भारद्वाज मुनि से मिले थे। उन्होने ही उन्हें चित्रकूट में रहने का सुझाव दिया था। राम ने उस समय उन्हें लौटते समय भी मिलने का वचन दिया था। अतः वापसी में वे उनसे मिलने गए। भारद्वाज मुनि के आश्रम में एक रात रुक कर अगले दिन फिर अयोध्या के लिए चले।
मुनि से उन्हे प्रयाग से अयोध्या जाने के रास्ते के सभी वृक्षों ने समय न होने पर भी फल लगने का वरदान दिया। इस वरदान के कारण रास्ते के आसपास के तीन योजन तक के वृक्ष में फल लग गए।
हनुमान जी द्वारा श्रिंगवेरपुर और अयोध्या जाकर राम के आगमन की सूचना देना
प्रयाग से चलने के बाद जब कोशल जनपद की सीमा शुरू होने वाली थी, तब राम ने हनुमान से पहले जाकर श्रिंगवेरपुर में अपने मित्र गुह और अयोध्या में अपने भाई भरत को अपने आगमन की सूचना देने के लिए कहा। हनुमान मनुष्य का रूप धारण कर तीव्र गति से उड़ चले। पहले गुह को यह सूचना दी। तब अयोध्या में नंदिग्राम मे जाकर भारत को राम के आने की सूचना दी।
“राम आ रहे हैं” यह समाचार पाकर भरत जैसे पुनर्जीवित हो उठे। खुशी से उन्होने उन्होने हनुमान को अनेक उपहार देने की घोषणा कर दिया। हनुमान ने उनके पूछने पर चित्रकूट में जब भरत राम से मिलकर लौटे थे, उसके बाद का सारा वृतांत- जिसमें सीता हरण, रावण से युद्ध और पुष्पक विमान से आगमन– उन्हें कह सुनाया।
अयोध्या में राम, लक्ष्मण के स्वागत की तैयारी
भरत चित्रकूट में राम से मिलकर आने के बाद से राम की तरह तपस्वी वेश-भूषा और दिनचर्या अपनाए हुए राजधानी से बाहर नंदीग्राम में रह रहे थे। वहीं से वे राम के प्रतिनिधि के रूप में प्रशासनिक कार्य करते थे। हनुमान द्वारा राम के आगमन का समाचार सुन कर वे शीघ्र ही अयोध्या नगर यह समाचार सुनाने के लिए गए।
समस्त नगर राम, लक्ष्मण और सीता के स्वागत के लिए सजाया गया। माताएँ, मंत्री, ब्राह्मण, गुरुजन आदि सभी उन सब के स्वागत के लिए नगर से बाहर नंदिग्राम आ गए।
अयोध्या से नंदिग्राम तक का मार्ग साफ-सुथरा कर सजा दिया गया। स्वागत के लिए विविध वाद्य के साथ-साथ हाथी भी लाए गए। राम के वनवास के दौरान की सारी बातें लोगों में चर्चा का विषय बन गया।
राम का सबके साथ अयोध्या की सीमा में पहुँचना
अयोध्या जनपद की सीमा पर राम विमान से उतर कर अपने मित्र निषाद राज से मिले। भारद्वाज मुनि की तरह ही उन्होने जाते समय उनसे भी वापसी में मिलने का वचन दिया था।
जाते समय सीता ने गंगा की पूजा कर पति और देवर के साथ सकुशल वापस आने पर पूजा की मन्नत मांगी थी। अतः उन्होने गंगा पूजन किया।
इसके बाद पुष्पक विमान से सब अयोध्या के लिए चले। निषादराज भी राज्याभिषेक उत्सव देखने के लिए साथ चले।