पुत्रों और पुत्रवधू के निर्वासन का शोक
रानी केकैयी ने राजा दशरथ से उनके बड़े पुत्र राम के लिए चौदह वर्ष के वनवास का वरदान माँगा। यह उनके लिए एक बड़ा मानसिक आघात था। वे बार-बार मूर्छित हो रहे थे। उनका वृद्ध शरीर इस मानसिक आघात से इतना आहत हुआ कि वे महीनों के रोगी की तरह हो गए। यहाँ तक कि उन्हें चलने के लिए भी सहारे की जरूरत होने लगी। अंततः राम के अयोध्या से जाने की छठी रात को उनकी मृत्यु हो गई। इसके पीछे श्रवण कुमार के माता-पिता का शाप भी था।
राम द्वारा सेना और खजाना ले जाने से इंकार करने पर दशरथ जी ने सुमंत्र से रथ लेकर जाने के लिए कहा ताकि उनके बच्चों को राज्य की सीमा तक पैदल नहीं चलना पड़े। अपने राज्य की सीमा पर पहुँच कर राम ने सुमंत्र और अपने मित्र निषाद राज गुह तथा जो प्रजा जन उनके साथ वहाँ तक आ गए थे, उन सबको विदा कर दिया।
पुत्रों और पुत्रवधू के लौटने की आशा समाप्त होना
सुमंत्र सीमा पर राम को छोड़ कर वापस अयोध्या लौट गए। उनके लौटने के बाद राम के लौटने की रही-सही आशा भी समाप्त हो गई। दशरथ को अब भी यह आशा थी कि अगर धर्म मर्मर्ज्ञ उनके पुत्र नहीं लौटेंगे तो कम-से-कम उनकी पुत्रवधू सीता ही लौट आएगी। पर अब यह उम्मीद भी नहीं रही। अब उन्हे यह निश्चय हो गया कि उनके प्रिय पुत्र चौदह वर्षों की लंबी अवधि के लिए उनसे दूर चले गए थे।
सुमंत्र द्वारा राम का संदेश सुनाने पर भी शोकग्रस्त दशरथ कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकें। फिर वे अचेत होकर गिर पड़े। वे कभी बात करते-करते सो जाते, फिर अचानक चौंक कर जग जाते। कभी रोते। कभी उन्हें अपने जीवन पर पश्चाताप होता। कभी वे सब आपस में एक दूसरे को समझाते।
ऐसे में ही राजा दशरथ को अपने द्वारा गलती से श्रवण कुमार की हत्या के पाप का स्मरण हो आया। उन्होने कौशल्या को वह कहानी सुनाया। दशरथ ने माना कि जैसे अनजाने में विष खा लेने पर भी उसका प्रभाव उसी प्रकार होता है जिस प्रकार जानबूझ कर खाने से। इसलिए पाप जानबूझ कर किया गया हो या अनजाने में उसका दुष्परिणाम होता ही है। श्रवण के पिता का शाप अनजाने में हुए उनके पाप के लिए कर्मफल के अनुसार ही था।
राजा की मृत्यु
अपनी पत्नी कौशल्या को यह कहानी सुनाते हुए दशरथ राम के जाने के दुख से अत्यंत कातर हो गए। रानी सुमित्रा भी वहीं थी। विकल होकर वे अनेक प्रकार से विलाप करने लगे। उनकी इंद्रियाँ शिथिल होने लगीं। वे शांत हो गए। रानियों ने समझा कि वे सो चुके हैं।
लेकिन वह मर चुके थे, यह बात रानियों को पता नहीं चला। वे दोनों उन्हे सोया हुआ समझ कर शोक विह्वल होकर रोते-रोते सो गईं।
राजा की मृत्यु की सूचना
सुबह जब चारण आदि राजा को जगाने आए। तब अन्तःपुर की स्त्रियों ने जाकर देखा, तो उन्हें पता चला कि राजा का मृत शरीर पलंग पर लेटा था। उनके रोने से कौशल्या और सुमित्रा उठी। पति को मृत देख कर वे रोते हुए जमीन पर लोटने लगीं। आवाज सुनकर कैकेयी आदि अन्य स्त्रियाँ भी वहाँ रोते हुए दौड़ी आईं।
रामचरितमानस में राम नाम लेते हुए दशरथ की मृत्यु का विवरण है। लेकिन रामायण के अनुसार राम की चर्चा करते हुए और श्रवण कुमार को याद करते हुए वे अचेत हो गए। रानियों ने समझा कि वे सो गए। उनकी मृत्यु की बात सुबह में पता चला।
शीघ्र ही राजा के मरने की खबर समस्त अयोध्या नगर में फैल गई। शोक और गहन हो गया। राजा के मंत्री और पुरोहित आए। अब दो समस्याएँ थी। पहला, राजा के चार में से एक भी पुत्र उस समय मुखाग्नि देने के लिए उपस्थित नहीं थे। अतः उनका अंतिम संस्कार कौन करे? दूसरा, राजा किसे बनाया जाय?
सलाह-मशविरा के बाद यह तय हुआ कि तीव्र गामी दूत भरत को बुलाने के लिए कैकेय देश भेजा जाए। उनके आने तक राजा का शव सुरक्षित रखा जाय।