अकंपन द्वारा रावण को दंडकारण्य में राक्षसों के संहार की सूचना देना
खर-दूषण और राम के युद्ध में से जो कुछ राक्षस भाग कर जीवित बच गए थे, उनमें से एक का नाम था अकम्पन। वह भाग कर लंका राक्षसराज रावण के पास पहुँचा। उसके खर-दूषण आदि के साथ दंड्कारण्य के अधिकांश राक्षसों का राम के हाथों मारे जाने का समाचार उसे सुनाया।
खर-दूषण दोनों भाई बहुत बलवान राक्षस थे और रावण के राक्षस राज्य की उत्तरी सीमा के रक्षक थे। हजारों राक्षसों सहित उसके मारे जाने के समाचार से रावण बहुत क्रुद्ध हुआ। राम ने अकेले ही कैसे सब को मार डाला, इस पर उसे संदेह हुआ। उसने पूछा कहीं कोई देवता या कोई अन्य तो राम की सहायता नहीं कर रहा था।
अकम्पन ने इससे इनकार करते हुए राम के युद्ध कौशल और धनुष विद्या के कुशलता की तारीफ की। क्रुद्ध रावण दोनों भाइयों को मार देने के लिए उद्द्त हो गया। लेकिन अकम्पन ने उन्हे अजेय बताते हुए कहा कि प्रत्यक्ष युद्ध में वे नहीं जीते जा सकते है।
अकंपन द्वारा रावण को सीता हरण की सलाह
इसलिए उन्हे हराने के लिए अकम्पन ने रावण को एक सलाह दिया। उसने सलाह दिया कि राम की पत्नी सीता को अगर रावण ले आए तो वे शोक से बलहीन हो जाएँगे। रावण ने उसकी बात मान ली।
रावण अकम्पन की सलाह के अनुसार जब सीता का हरण करने के लिए जाने लगा तो रास्ते में वह मारीच के आश्रम में गया।
मारीच की सलाह
मारीच राक्षसी ताटका का पुत्र था, जिसे राम ने मार दिया था। यह मारीच वही राक्षस था, जिसे विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करते हुए राम ने बिना नोक वाला बाण मारा था। उस बाण के प्रहार से वह कई योजन दूर समुद्र में आ गिरा था। उसके बाद वह एक साधू के रूप में आश्रम बना कर तपस्या कर अपना जीवन बिता रहा था। वह राम की शक्ति को जानता था।
जब रावण ने उसे बताया कि वह राम की पत्नी का अपहरण करने के लिए जा रहा है, तो मारीच ने उसे यह कहते हुए रोका कि जिस किसी ने भी उसे यह सलाह दी, है वह उसका शत्रु है। राम से शत्रुता लेने का अर्थ है सोए हुए सिंह के सिर पर लात मार कर उसे उठाना क्योंकि ऐसा करने से सिंह जीवित नहीं छोड़ेगा। मारीच ने जब इस तरह रावण को समझाया तो वह मान गया और सीता के अपहरण का विचार छोड़ कर लौट गया।
शूर्पनखा द्वारा रावण को राम के विरुद्ध भड़काना
रावण जब अपने मंत्रियों के साथ बैठा था, तब उसकी बहन शूर्पनखा लंका आई। उसने रावण को राम के विरुद्ध भड़काना शुरू किया। उसने रावण को विश्वास दिलाया कि राम उसके लिए बहुत बड़ा ख़तरा हैं लेकिन वह इस से अनजान बना हुआ अपने सुख और आराम में व्यस्त है।
शूर्पनखा ने यह भी कहा कि जिस व्यक्ति ने अकेले पैदल होते हुए भी डेढ़ मुहूर्त (तीन घड़ी) के अंदर ही चौदह हजार राक्षसों को मार डाला ऐसे विकट ख़तरे को अनदेखा करना रावण और राक्षस जाति के लिए बहुत घातक होगा। स्त्री होने के कारण शूर्पनखा को तो नाक-कान काट कर केवल अपमानित कर छोड़ दिया लेकिन पुरुष राक्षसों को वह जीवित नहीं छोड़ेंगे। उसके बल पर ऋषि-मुनि अब निडर हो गए हैं।
शूर्पनखा द्वारा रावण को सीता के अपहरण की सलाह देना
शूर्पनखा ने राम, लक्ष्मण और सीता का परिचय भी उसे दिया। रावण को भड़काते हुए उसने सीता के सौंदर्य की प्रशंसा किया। यह भी बताया कि वह उसे रावण की पत्नी बनाने के लिए लाने गई थी तो लक्ष्मण ने उसे इस तरह अपमानित और कुरूप कर दिया। स्पष्टतः यह झूठ था।
शूर्पनखा ने अनेक प्रकार से रावण को राम के विरुद्ध भड़का कर उनकी पत्नी सीता का अपहरण कर लेने की सलाह दिया।
बहन की इस दुर्दशा और इतने राक्षसों के मारे जाने से रावण पहले ही बहुत अधिक क्रोधित था। अकम्पन ने भी उसे ऐसी ही सलाह दी थी। अतः वह फिर सीता के अपहरण के लिए तैयार हो गया।
रावण द्वारा सीता के अपहरण का निश्चय
रावण एक बार फिर सीता के अपहरण का निश्चय कर मारीच के आश्रम में गया। रावण ने राम के अपराध अर्थात राक्षस वध और शूर्पनखा को अपमानित करने, की बात बता कर मारीच की प्रशंसा की। साथ ही सीता के अपहरण की योजना बता कर उससे मदद माँगा।
रावण द्वारा सीता हरण की योजना
योजना के अनुसार मारीच सुंदर हिरण बन कर राम के आश्रम के आसपास जाता। उसे देख कर सीता उसे पकड़ने के लिए कहती। जब दोनों भाई उसके पीछे आश्रम से बाहर चले जाते तो इसी बीच रावण सीता को ले जाता। पत्नी के अपहरण से राम मानसिक रूप से टूट जाते। इस अवसर का लाभ उठा कर रावण राम पर आक्रमण कर राक्षसों का बदला लेता और उन्हे मार कर अपना राज्य अकंटक कर लेता।
मारीच का सीता हरण की योजन में शामिल होना
यह योजना सुन कर मारीच बहुत घबड़ा गया। उसके अनुसार यह योजना स्वयं मारीच, रावण और समस्त राक्षस जाति का विनाश करने वाली थी। उसने फिर राम का गुण और उनकी शक्ति बता कर रावण को इस अनर्थकारी योजना को छोड़ देने की सलाह दिया।
उसके अनुसार सीता राम को इतनी प्रिय थी कि उनका अहित करने वाले को राम जीवित नहीं छोड़ते। साथ ही सीता में भी इतना तेज था कि उन पर बलप्रयोग नहीं किया जा सकता था।
मारीच ने राम के साथ युद्ध का विचार त्याग देने और विभीषण जैसे धर्मात्मा मंत्रियों की सलाह से कार्य करने के भी सुझाव दिया। लेकिन उसके इस सुझाव पर रावण क्रोधित हो गया। इस बार वह सीता हरण के अपने निश्चय पर अटल था। उसने कठोरता से मारीच को अपनी सहायता करने का आदेश दिया।
मारीच द्वारा रावण की सहायता के लिए सहमति
जब बहुत समझाने पर भी रावण नहीं समझा तब आने वाले भयंकर विनाश की चेतावनी देते हुए मारीच उसकी सहायता करने के लिए यह सोच कर तैयार हो गया कि जब मरना ही है तो रावण के हाथों मरने से अच्छा राम के हाथों मरना है।
इस तरह सीता के अपहरण और राक्षस जाति के भयंकर संहार के लिए पृष्ठभूमि बन गई।