धेनुक का अत्याचार
एक दिन जब कृष्ण और बलराम अपने ग्वालसखाओं के साथ गाय चरा रहे थे, तब उनके सखा श्रीदामा, सुबल और स्तोक कृष्ण (छोटा कृष्ण) आदि ने उन्हें निकट ही स्थित एक ताड़ वन के विषय में बताया। वहाँ के ताड़ फल बहुत स्वादिष्ट होते हैं लेकिन वहाँ रहने वाले दुष्ट राक्षस धेनुक के डर से लोग तो क्या पशु-पक्षी भी उधर नहीं जाते थे। उस दैत्य ने कितने ही मनुष्यों को मार डाला था। वह दैत्य और उसके मित्र वहाँ गधे के रूप में रहते थे। उन सखाओं ने उस वन के फलों को खाने की इच्छा प्रकट किया।
धेनुक वध
दोनों भाई सखाओं की ये बाते सुन कर हँसे और सबके साथ उस ताड़ वन के लिए चल पड़े। वहाँ पहुँच कर परम बलशाली श्रीबलराम ने एक पेड़ को पकड़ कर जोर से हिलाया जिससे बहुत से फल नीचे गिर गए। फलों के गिरने की आवाज सुनकर वह गधा रूपी बलशाली दैत्य दौड़ता हुआ आया। उसने अत्यंत वेग से पिछले पैरों से बलरामजी की छाती पर दुलत्ती मारा।
दुबारा जब वह फिर दुलत्ती मारने आया। बलरामजी ने फुर्ती से उसके दोनों पैर अपने एक ही हाथ से पकड़ लिया और जोर से घुमाकर उसे एक ताड़ वृक्ष पर दे मारा। इससे उस गधे रूपी दैत्य धेनुक की मृत्यु हो गई।
धेनुक के सहयोगियों का संहार
धेनुक के शरीर को ताड़ के जिस विशाल वृक्ष पर बलरामजी ने फेंका था, उसके गिरने से दूसरे, फिर तीसरे और इस तरह कई वृक्ष गिर पड़े। वहाँ के सभी पेड़ हिल गए। लगा जैसे कोई झंझावात आया हो। इससे उस दैत्य के बंधु-बांधव भी प्रतिशोध लेने आ गए और दोनों भाइयों पर टूट पड़े।
दोनों भाइयों ने सभी को उसी तरह पिछले पैरों से पकड़ कर घुमा-घुमा कर वृक्षों पर दे मारा। वहाँ की धरती टूटे हुए ताड़ के वृक्षों और उन दैत्यों के मृत शरीर से भर गई।
ताड़वन के मुक्ति पर आनंद
इस तरह धेनुकासुर के आतंक से वह ताड़वन मुक्त हुआ। अब मनुष्य और पशु पक्षी उस वन का उपयोग कर सकते थे।
देवतागण दोनों भाइयों पर फूल बरसाने लगे और बाजे बजा कर उनकी स्तुति करने लगे।
इस तरह श्रीकृष्ण की बाललीलाएँ मधुर वात्सलय के साथ-साथ शौर्य और वीरता से भी भरी हुई भी है।