शंभाला नगर: जहां हनुमान और अश्वत्थामा रहते हैं?-कैलाश पर्वत: भाग 4

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कल्पना कीजिए, करीब एक लाख लोगों का हँसता-खेलता एक शहर। बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स और लोगों के हलचल से भरा। बड़े-बड़े भव्य घर सुंदर-सुंदर पेंटिंग्स, मूर्तियों एवं अन्य कलात्मक निर्माणों से सजे हुए हैं। लेकिन एक दिन अचानक इस शहर के रहने वाले सभी लोग, सभी एक लाख लोग, गायब हो जाते हैं। बिल्डिंग्स आदि तो बने रहते हैं लेकिन इंसान कोई नहीं रहता वहाँ। न तो किसी का मृत शरीर मिलता है  न ही किसी ने उन्हें कहीं जाते हुए देखा। कहाँ गए अचानक एक लाख लोग? ये कल्पना नहीं, शायद सच्ची कहानी है एक शहर की। यह शहर है तिब्बत का गुगे शहर।

आप पूछेंगे मैं कैलाश की बात करते-करते अचानक शंभाला की बात करने लगी और शंभाला की बात करते-करते गुगे की बात करने लगी। ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए कि इन तीनों में शायद कोई गहरा संबंध है।

आज के आलेख में हम बात करेंगे की शंभाला के बारे में शास्त्रों में क्या कहा गया है? इसका कैलाश से क्या संबंध है? गुगे के लोगों के गायब होने से इस शहर का क्या संबंध है।

शंभाला के विषय में शास्त्रों में चर्चा

हिन्दू और बौद्ध धर्म के कई प्राचीन और पवित्र ग्रन्थों में एक रहस्यमय नगर की चर्चा है। इस नगर को शंभाला, संभाल ग्राम, ज्ञानगंज, कपापा, सिद्धाश्रम, संगरिला, इत्यादि नामों से भी पुकारा गया है।

हिन्दू ग्रन्थों में भागवत, महाभारत, मत्स्यपुराण आदि कल्कि अवतार और शंभाला का संकेत करते हैं। विष्णु पुराण में कल्कि अवतार की चर्चा करते हुए ‘संभाल ग्राम’ नाम आता है। इसे शंभाला ही माना जाता है। भागवत के 12वें खंड के दूसरे अध्याय का 18वां श्लोक भी संभल ग्राम में कल्कि अवतार की बात करता है।

बौद्ध धर्म की एक शाखा है वज्रयान। इसका ही एक संप्रदाय है कालचक्रयान। वज्रयान और कालचक्रयान बौद्ध धर्म की ऐसी शाखाएँ हैं जो तंत्र, मंत्र और यंत्र को विशेष महत्व देता है। इन्हें बोलचाल में तांत्रिक मत कहते हैं। इस संप्रदाय के ग्रन्थों में इस रहस्यमय नगर की सबसे अधिक चर्चा है। वे इसे शंभाला कहते हैं। उनके कुछ अनुष्ठान और यंत्रों में भी शंभाला की मान्यता देख्नने को मिलता है। माना जाता है कि बॉन धर्म का उद्गम शंभाला में ही हुआ था।

कालचक्र तंत्र नामक किताब में सांकेतिक रूप से पिरामिड और आयुर्वेद के कई रहस्य छिपे हुए हैं। इनके अनुसार शंभाला के पहले राजा सुचन्द्र थे। उन्होने क्रिस्टल का एक नौ मंज़िला पर्वत बनवाया था। यह क्रिस्टल पर्वत अपनी रचना और शक्ति के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ के निवासी शारीरिक और मानसिक रूप से सम्पूर्ण माने जाते थे। इस नगर में आध्यात्म और विज्ञान का बहुत ही अच्छा संगम था। कालचक्र तंत्र यह भी भविष्यवाणी करता है कि दुनिया में जब अज्ञानता, हिंसा और अधर्म चरम पर पहुँच जाएगा तब शंभला का अंतिम राजा होगा। उस राजा का नाम होगा रुद्रचक्रण। वह राजा अधर्म का नाश कर धर्म की पुनर्स्थापना करेगा। तिब्बती बौद्ध लोगों में एक अनुष्ठान होता है जिसे कालचक्र दीक्षा कहते हैं। इस दीक्षा के दौरान शंभाला की अवधारणा, उसकी आध्यात्मिक शक्तियों और चक्र के बड़े ही गूढ और रहस्यमय  तांत्रिक सिद्धांतों को बताया जाता है।      

शंभाला नगर और इसके लोगों की विशेषताएँ

विभिन्न ग्रन्थों में शंभाला नगर के बारे में जो बताया गया है उनके अनुसार इस नगर के लोग साधारण मनुष्य नहीं बल्कि बहुत ही सिद्ध योगी और उच्च आध्यात्मिक शक्ति वाले लोग हैं। यह साधारण मनुष्यों से बहुत अधिक लंबे और बलिष्ठ होते हैं। योग और आयुर्वेद के उपयोग में ये लोग बहुत सिद्धहस्त है। इस कारण ये लोग बहुत दिनों तक जीवित रहते हैं। कुछ सौ साल से हजारों साल तक। हनुमान और अश्वत्थामा जैसे चिरंजीवी यहीं रहते हैं।

शंभाला के लोगों का साइंस और टेक्नॉलॉजी हमलोगों से बहुत ही उन्नत है। ये टेलीपैथी से संपर्क करना जानते हैं। यानि ये बिना बोले किसी से बात कर सकते हैं। ये पृथ्वी के विभिन्न भागों के लोगों से ही नहीं बल्कि ब्रह्मांडीय ग्रहों और देवताओं से भी संपर्क कर सकते हैं। वे दूसरे ग्रहों पर जा सकते हैं। इतना ही नहीं ये लोग टाइम ट्रेवल भी कर सकते हैं। टाइम ट्रेवल यानि समय से आगे या पीछे जाना।

पुराने ग्रन्थों में एक बहुत ही शक्तिशाली रत्न का उल्लेख मिलता है जिसका नाम है ‘चिंतामणि’। माना जाता है कि चिंतामणि भी इसी नगर में है। चिंतामणि की विशेषता यह है कि यह व्यक्ति की कोई भी इच्छा पूरी कर सकता है। इतना ही नहीं यह ब्रह्मांड के दूसरे ग्रहों से संपर्क भी करने में मदद करता है।

कहीं-कहीं यह संकेत भी मिलता है कि कलयुग का अंत होने पर कल्कि अवतार यहीं होगा। चूंकि कल्कि पृथ्वी पर शांति स्थापित करेंगे। इसलिए इस स्थान का नाम शंभाला रखा गया है। शंभाला संस्कृत शब्द ‘शाभ’ से निकला हुआ है जिसका अर्थ होता है शांति का स्थान, ऐसा भी उल्लेख मिलता है।

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कहाँ है शंभाला नगर?

अब सवाल उठता है यह नगर है कहाँ। पवित्र ग्रन्थों में शंभाला के भूगोल के विषय में जो बताया गया है उसके अनुसार यह विशाल कमल के फूल की तरह है जिसकी आठ पंखुड़ियाँ हैं। यानि यह साम्राज्य आठ बर्फ से ढंके पहाड़ों से घिरा हुआ है। इन पंखुड़ियों के बीच सुंदर पहाड़ियाँ फैली हुई हैं और शंभाला नदी बहती है। यह नदी इस नगर को जीवन देती है। राजधानी में कई महलों का निर्माण किया गया है। ये महल सोने, चाँदी, पन्ने, नीलम, माणिक और मोती जैसे बहुमूल्य धातुओं एवं रत्नों से बने हुए हैं।

लेकिन इन लक्षणों के आधार पर अब तक इसका भौगोलिक क्षेत्र खोजा नहीं जा सका है। तिब्बती मान्यताओं के अनुसार यह हिमालय के किसी दुर्गम स्थान पर है। कुछ लोग मानते हैं कि यह कैलाश के पश्चिम में स्थित है। कैलाश शिखर अपने आप में दुर्गम क्षेत्र है और इस पर आज तक कोई चढ़ नहीं पाया है। चूंकि इस नगर को आठ पहाड़ों के कमल के पंखुड़ियों पर बसा हुआ कहा गया है। तो यह लक्षण कैलाश से इसका संबंध दिखाता है। क्योंकि कैलाश को इसके आसपास के छोटे पहाड़ियों के कारण अष्टदल कमल पर स्थित कहा गया है। सतलज और ब्रह्मपुत्र नदी यहीं से होकर बहती है।

क्यों नहीं खोजा जा सका है शंभाला नगर को: तीन सिद्धान्त

शंभाला के लोग दुनिया के सामने नहीं आना चाहते

प्राचीन काल से ही शंभाला नगर को खोजने के लिए सबसे अधिक प्रयास कैलाश के आसपास ही किया गया है। लेकिन इतने प्रयासों के बावजूद इसे क्यों नहीं खोजा जा सका है आज तक? इसके बारे में पवित्र ग्रन्थों में कहा गया है कि ये लोग स्वयं नहीं चाहते कि दुनिया उनके बारे में जाने। ये स्वयं को छुपाए हुए हैं। लेकिन उन्हें दुनिया के बारे में सब पता चलता रहता है। कभी-कभी वे किसी की सहायता भी करते हैं जब उन्हें जरूरत लगता है तब, लेकिन वे प्रकट नहीं होना चाहते। यह भी कहा जाता है कि इस नगर में वही प्रवेश पा सकता है जिसकी आध्यात्मिक शक्ति बहुत उच्च स्तर की हो। इसलिए साधारण मनुष्य इस तक नहीं पहुँच पाए हैं आजतक।

यह एक काल्पनिक नगर है

दूसरी तरफ बहुत सारे लोग इस नगर या राज्य को कपोल कल्पना मानते हैं। उनके अनुसार यह एक काल्पनिक नगर है इसलिए आज तक इसका पता नहीं चल सका। अगर यह वास्तव में होता तो आधुनिक वैज्ञानिक यंत्रों द्वारा दिख गया होता। धरती के ऊपर चक्कर लगाने वाले सैटेलाइट की नजर से बच नहीं सकते थे। जबकि नासा ने 2015 में कैलाश पर सैटेलाइट को फोकस भी किया था।

यह दुर्गम स्थान पर है और अद्भुत आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक ऊर्जा से सम्पन्न है

लेकिन बहुत से लोग हैं जो इसे वास्तविक मानते हैं। उनके अनुसार यह नगर बहुत प्राचीन समय से है और आज भी अस्तित्व में है। पवित्र ग्रन्थों में लिखी गई बाते झूठी नहीं हो सकती। यह कलयुग के अंत तक भी रहेगा। तब यहीं के लोग पृथ्वी पर फिर से सतयुग लाएँगे। ये लोग गुगे नगर के लोगों के गायब होने को उनके अस्तित्व का एक बड़ा प्रमाण मानते हैं। गुगे राज्य के लोग शंभाला के लोगों से सुरंगों द्वारा संपर्क में थे। वे उनकी सहायता से ही जीवित रहे और न मुसीबत पड़ने पर उनके पास ही चले गए।

शंभाला के अस्तित्व के समर्थन में तर्क

तो अब हम फिर आते हैं गुगे नगर की कहानी पर जिसकी चर्चा मैंने शुरू में की थी। गुगे तिब्बत का एक नगर था। आज यह अपने ऐतिहासिक नगर के अवशेषों के कारण तिब्बत का एक पर्यटक स्थल बना हुआ है। यह कैलाश से ज्यादा दूर नहीं है। माना जाता है कि राजनीतिक कारणों से अपनी जान को खतरा देख कर एक राजकुमार 910 ई में इस दुर्गम स्थान पर आ गया। दुर्गम होने का एक फायदा तो यह था कि यहाँ बाहरी लोग आसानी से नहीं आ सकते थे। लेकिन इससे मुश्किल यह भी थी कि वहाँ जीना भी बहुत कठिन था। स्थानीय स्तर पर भोजन और अन्य जरूरी चीजें बहुत कम उपलब्ध होती थी। यह बर्फ से ढँकी एक बंजर जमीन थी। बाहर से आयात भी नहीं किया जा सकता था। लोगों के अनुसार यहाँ शहर बसाना मूर्खता थी। पर वह राजकुमार वहाँ जीवित ही नहीं रहा बल्कि एक राज्य भी बना लिया। उसका राज्य उनके तीन बेटों में बंट गया।

जो शाखा गुगे में रही उसके बारे में यह माना जाता था कि यह भूख और सर्दी से मुक़ाबला कर अगर जीवित रह भी गए तो ज्यादा उन्नति नहीं कर पाएंगे। लेकिन 13वीं शताब्दी आते आते तिब्बत के लोगों ने देखा कि गुगे का नगर राज्य समृद्ध होने लगा। नगर बड़े बड़े बिल्डिंग्स से सजने लगे। जरूरत ही नहीं बल्कि ऐशोंआराम के सारे साधन भी वहाँ मौजूद थे। इसकी जनसंख्या बढ़ कर करीब एक लाख हो गई। एक समृद्ध नगर के रूप में गुगे दस-बीस साल नहीं बल्कि लगभग दो सौ साल तक रहा।

गुगे की समृद्धि से तिब्बत के अन्य भाग के लोग ईर्ष्या के साथ आश्चर्य भी करते थे। जिस स्थान पर 10-20 हजार लोगों के जीवित रहने के भी साधन नहीं थे वहाँ एक लाख लोग इतने आराम से कैसे रह रहे थे! विशेषकर तब जबकि वे कहीं से ज्यादा आयात-निर्यात भी नहीं करते थे। कई बार दूसरे राजा गुगे के राजा से उनकी राज पूछते। गुगे के राजा इसका क्रेडिट शंभाला के लोगों को देते लेकिन कुछ ज्यादा नहीं बताते।

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15वीं शताब्दी में लद्दाख के राजा ने गुगे पर आक्रमण कर दिया। सुबह राजा में सारे नगर को घेर लिया। जब कोई युद्ध करने नहीं आया तब उसने अपने सैनिकों से नगर पर आक्रमण करने के लिए कहा। लेकिन यह क्या! नगर में कोई व्यक्ति था ही नहीं मुक़ाबले के लिए।

घरों के अंदर खोजा गया। चप्पा-चप्पा छान मारा गया। लेकिन कोई इंसान नहीं दिखा। हाँ कुछ घरों के अंदर सुरंग जरूर मिले। इन सुरंगों की लंबाई 1 से 2 किमी तक थी। इन सुरंगों को तोड़ दिया गया था। इनके आसपास देख कर ऐसा लगता था कि यहाँ हाल में भी बहुत से लोग रहे हों और बहुत से काम किए हों। टूटी सुरंगों से स्पष्ट था कि वे लोग जाने से पहले इसे जानबूझ कर तोड़ गए थे। इसलिए लद्दाख के राजा ने टूटे सुरंगों से मालवा साफ कर आगे बढ़ने का आदेश सैनिकों को दिया।

सैनिक जब टूटे सुरंगों से आगे बढ़े तो पता चला कि सुरंग कैलाश शिखर के पास खुलता था। लेकिन सुरंग के उस पार किसी इंसान का कोई निशान नहीं था। यह पता नहीं चल पाया कि यहाँ से वे सब कहाँ गए। कुछ दिन रुकने के बाद वहाँ की कुछ बहुमूल्य कलाकृतियाँ और समान लेकर लद्दाख का राजा लौट गया। लेकिन बिल्डिंग्स वहीं खड़ी रही। समय के साथ-साथ बहुत से बिल्डिंग टूट गए या मिट्टी में दब गए जो बाद में खुदाइयों में निकले। यहाँ एक पुरातात्विक खुदाई 2013 में भी हुआ था। जिससे इस नगर का नक्शा और ज्यादा क्लियर हुआ।  

यह कहानी लद्दाख के राजा और सैनिकों ने तिब्बत के लोगों को बताया और लोगों में दंतकथा के रूप में आज तक चली आ रही है। बहुत से लोग मानते हैं कि गुगे के लोगों को शंभाला सा सपोर्ट मिलता था। मुसीबत आने पर वे लोग भाग कर वहीं चले गए।

लेकिन इतिहासकार चूँकि शंभाला के अस्तित्व को ही नहीं मानते हैं इसलिए यहाँ के लोगों के गायब होने की थ्योरी को भी नहीं मानते हैं। उनके अनुसार ये लोग आंतरिक झगड़े और बाहरी आक्रमण के कारण मार डाले गए। अभी तक ऑफिसियल थ्योरी यही है। टुरिस्ट और स्टूडेंट्स को यही बताया जाता है। विकीपीडिया भी यही कहता है।   

लेकिन कुछ इतिहासकार इस पर कुछ सवाल उठाते हैं। पहला यह कि आक्रमणकारी इतनी बड़ी संख्या में नहीं आए थे कि एक लाख लोगों को रातोंरात मार डालते। अगर मान लिया जाय कि एक रात में नहीं बल्कि कई दिनों में ये सब मारे गए होंगे, केवल बाहरी आक्रमणकारियों द्वारा ही नहीं बल्कि अपने लोगों द्वारा भी मारे गए होंगे। फिर भी उनके शव या शव के अवशेष तो मिलना चाहिए था। बाकी दुनिया से इस क्षेत्र का बहुत संपर्क नहीं था इसलिए वहाँ की खबर लोगों को देर से मिलना संभव है लेकिन इतनी लाशों का कोई अवशेष नहीं मिलना आश्चर्यजनक है।

इस बारे में एक तीसरी थ्योरी भी है जो इसके पीछे एलियन यानि दूसरे ग्रह के प्राणियों का हाथ मानते हैं। लेकिन ये वे लोग हैं जो पिरामिड से स्टोन हेज तक, जो काम मानव क्षमता से बाहर लगता है, उसका श्रेय एलियन को दे देते हैं। इस थ्योरी का कोई आधार नहीं है।         

जो लोग गुगे के लोगों को गायब होने का संबंध शंभाला से जोड़ते थे, उनके लिए यह एक बड़ा सबूत की तरह था। इसके बाद शंभाला के खोज के और कई प्रयास हुए। ऐसे खोज करने वालों में तिब्बत के अंदर और इसके बाहर दोनों के लोग थे।

शंभाला के विषय में अब तक हुए खोज

1999 में रूस के डॉ एंर्स्ट मुल्दाशिव के रिसर्च टीम ने कैलाश के आकार को देख और अन्य आधारों पर यह निष्कर्ष निकाला कि यह कोई वास्तविक पर्वत नहीं है बल्कि एक पिरामिड है। उनके अनुसार यहाँ एक दो नहीं बल्कि पूरे 100 पिरामिडों का एक तंत्र है। इसमें कैलाश सबसे ऊंचा और केंद्र में स्थित हैं।

इसके बाद एक विचार चल पड़ा कि शंभाला राज्य या सभ्यता कैलाश के आसपास नहीं बल्कि इसके अंदर स्थित है। कैलाश और आसपास के पहाड़ वास्तव में खोखले पिरामिड हैं। इनके अंदर एक बहुत ही उन्नत सभ्यता निवास करती है। लेकिन ये लोग बाहरी दुनिया से संपर्क नहीं रखना चाहते, वे नहीं चाहते कि लोग उनके बारे में जाने, इसलिए उन्होने अपने क्षेत्र की बनावट ऐसी रखी है कि इस पर कोई चढ़ नहीं सके। बाहर से कुछ नहीं दिखे। कैलाश के आसपास उन लोगों ने ऐसे इंतजाम किए हैं कि कोई बाहर व्यक्ति वहाँ नहीं रह सकता। इसके आसपास जो जाता है वह बहुत जल्दी बूढ़ा होने लगता है। उसकी तबीयत खराब हो जाती है। वैज्ञानिक यंत्र काम नहीं कर पाते। समय दिशा और रास्तों के बारे में भ्रम होने लगता है।

वास्तव में उनलोगों ने हिमालय के बर्फीले और दुर्गम चोटियों में अपने को इस तरह छिपा लिया है कि उनके बारे में पता चलना लगभग असंभव बन गया है। प्रमाण के रूप में ये तिब्बत के एक प्राचीन पवित्र किताब कालचक्रयान तंत्र के एक नक्शे को प्रस्तुत करते हैं। इस नक्शे में दुनियाँ के कुछ पुराने शहरों को दिखाया गया है जैसे बेबीलोन को। इसी में शंभाला का नक्शा भी है। इस नक्शे को लगभग 2000 साल पुराना माना जाता है।

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1920 में रूस के निकोलस रेरिख ने भी कैलाश और शंभला के लिए एक अभियान शुरू किया। यह अभयान दल 1925 से 1928 तक इस क्षेत्र में रहा। रेरिख एक चित्रकार, लेखक और पुरातत्वविद थे। उन्होने शंभाला के बारे में दो किताबों में लिखा है- संभाला: इन सर्च ऑफ द न्यू एरा’ और अल्ताई हिमालया: ए ट्रेवल डायरी’। उनके खोज का उद्देश्य शंभाला के रहस्यों को खोजने के साथ ही चिंतामणि के बारे में भी खोज करना था।

अपनी किताब ‘संभाला: इन सर्च ऑफ द न्यू एरा’ में रेरिख लिखते हैं ‘5 अगस्त 1927 का वह दिन जब मैंने आकाश में एक अंडाकार वस्तु को उड़ते देखा। मेरे जीवन का एक ऐसा पल था जिसने मेरे सभी संदेहों को दूर कर दिया। मुझे लगा कि मैं शंभाला की झलक देख रहा हूँ। शंभाला को खोजना आसान नहीं है। यह केवल उन लोगों के लिए खुलता है जिनके हृदय शुद्ध है और जिनकी चेतना आध्यात्मिक रूप से विकसित हो चुकी है। यह नगरी ज्ञान शांति और एक उन्नत सभ्यता का प्रतीक है जो आने वाले समय में मानवता का मार्गदर्शन करेगी।’

‘अल्ताई हिमालया: ट्रेवल डायरी’ में चिंतामणि के अपने खोज के विषय में वे लिखते हैं ‘यह पत्थर शंभाला के रहस्यों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। चिंतामणि पत्थर असाधारण शक्तियों से भरा है और मानवता के विकास में सहायक हो सकता है।‘ उनके अनुसार इस दौरान उन्हें कई रहस्यमय अनुभव हुए।

एक और रूसी दार्शनिक थी हेलेना ब्लवातस्की। वह थियोसोफ़िकल सोसाइटी की सह संथापक सदस्य थीं। यह सोसाइटी प्राचीन धार्मिक दार्शनिक परम्पराओं और रहस्यों की खोज करती थी। इसी क्रम में उन्होने शंभाला पर भी कुछ खोज की। उनकी यह खोज थियोसोफ़िकल सोसाइटी के सिद्धांतों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। हेलेना ब्लावातस्की अपनी किताब द सीक्रेट डॉक्ट्रिन में शंभाला और गुप्त आध्यात्मिक शिक्षाओं पर चर्चा करती हैं। अपने अनुभव बताते हुए कहती हैं कि ‘शंभाला कोई साधारण स्थान नहीं है। यह एक आध्यात्मिक आदर्श राज्य है जहां उच्च आत्माएँ निवास करती हैं। यह नगरी हमें अदृश्य रूप से मार्गदर्शन देती है और केवल उन्हीं के लिए प्रकट होती है जिनकी चितना शुद्ध और आध्यात्मिक रूप से जागरूक होती है। उन्होने शंभाला के महात्माओं का उल्लेख किया जो गुप्त रूप से मानवता की सहायता करते हैं। उनके इस किताब के बाद से शंभाला के रहस्यों पर और भी खोज शुरू हुआ।

जर्मन तानाशाह हिटलर को प्राचीन सभ्यताओं और रहस्यवाद में गहरी रुचि थी। उसका सहयोगी हाइनरिच  हिमलर का भी मानना था कि शंभाला और अघर जैसी पौराणिक जगहों पर प्राचीन तकनीकें और मानसिक शक्तियाँ छिपी हैं। नाजी मानते थे कि ये तकनीकें उन्हें प्रभुत्व को बढ़ावा देने में मददगार होंगी। इसलिए वे इसे खोजना चाहते थे। 1938 में हिटलर के नाजी शासन ने अर्ट शेफर (Ernst Schäfer) के नेतृत्व में एक अभियान दल तिब्बत के लिए भेजा। आधिकारिक तौर पर इसका उद्देश्य था तिब्बत की संस्कृति, वनस्पति और भूगोल का अध्ययन करना। लेकिन इसका गुप्त उद्देश्य था शंभाला की खोज करना। पर इस अभियान दल का क्या हुआ, यह कभी दुनियाँ के सामने नहीं आ पाया। कुछ लोगों के अनुसार यह कभी शंभाला तक नहीं पहुँच पाए। अनेक अभियान किए लेकिन सब असफल रहे। कुछ के अनुसार ये भले ही शंभाला तक नहीं पहुँच सके पर उसके बारे में कई गुप्त रहस्य पता किया। कुछ के अनुसार उन्होने कुछ महत्वपूर्ण पता किया लेकिन इसे दुनिया से छिपाया। 

निष्कर्ष  

अभी तक शंभाला के बारे में जो कुछ कहा गया है वह किसी किताब के आधार पर या लोगों के अपने अनुभवों के आधार पर। किताब में स्पष्ट रूप से लिखने के बजाय संकेत का ज्यादा प्रयोग किया गया है और रहस्यात्मक शब्दों का प्रयोग किया गया है। लोगों के अनुभव को भी इसलिए ठोस सबूत नहीं माना जा सकता कि उन्हें कोई भ्रम हो सकता है या फिर अपनी यात्राओं की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए वे ऐसे दावे कर सकते हैं।

इनके अलावा साक्ष्य के नाम पर हमारे पास कोई ठोस सबूत नहीं है। हमने शुरू में गुगे के लोगों के गायब होने की बात की है वह अभी तक रहस्य बना हुआ है, पर इसे शंभाला के होने के ठोस सबूत नहीं माना जा सकता है। इतिहासकार और वैज्ञानिक इसे नहीं मानते। कैलाश के अंदर इसका स्थित होना भी किसी वैज्ञानिक सबूत के अभाव में अभी तक सिद्धान्त में ही है। कैलाश पर नहीं पहुँच पाने के लिए वैज्ञानिक और भौगोलिक कारण बताए गए हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कैलाश एक साधारण पर्वत है और इस पर या इसके आसपास किसी तरह के किसी असामान्य गतिविधि के कोई सबूत नहीं हैं। 

फिर भी कैलाश शिखर पर नहीं पहुँच पाना, इसके आसपास शंभाला नगर के होने और इसके मानसरोवर राक्षसताल झील के रहस्य इस पूरे क्षेत्र को रहस्य और आकर्षण का केंद्र बनाते हैं।

कैलाश मानसरोवर क्षेत्र से लगभग 175 किमी दूर भारत में उत्तराखंड के चमोली जिले में समुद्र तल से लगभग 16500 फीट की ऊंचाई पर एक झील है। इस झील का नाम है रूपकुंड। इस झील में लगभग 800 मनुष्यों के कंकाल सदियों से पड़े हुए हैं। ये लोग कौन थे? कैसे मरे? एक समय ही मरे या अलग अलग समय पर? ऐसे अनेक प्रश्न हैं। कंकालों के इस झील का संबंध भी कैलाश मानसरोवर के क्षेत्र और शंभाला से कुछ लोग जोड़ते हैं। पर इस झील की बाते अगले आलेख में करेंगे।  

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