राम के अश्वमेध यज्ञ में लव-कुश ने रामायण क्यों सुनाया था?- भाग 64

Share

सीता को निर्वासित करने के बाद राम अपना अधिकांश समय प्रशासनिक कार्यों और धार्मिक कार्यों में व्यतीत करते थे। वन में सीता के जुड़वा पुत्र होने की जानकारी शत्रुघ्न को थी लेकिन उन्होने किसी को बताया नहीं था क्योंकि वे राम को और व्यथित नहीं करना चाहते थे। लव-कुश वन में अपनी माँ और ऋषि वाल्मीकि के संरक्षण में पल रहे थे। उन्होने अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी। शास्त्रों के साथ-साथ उन्होने क्षत्रियों के लिए उचित युद्ध नीति और शस्त्र विद्या का अध्ययन और अभ्यास भी किया था। उन दोनों की स्मरण शक्ति बहुत अच्छी और आवाज बहुत सुरीली थी। इसलिए जब वाल्मीकि ने रामायण की रचना की तब उन दोनों भाइयों को ही सबसे पहले इसको पढ़ाया और इसे गाने का प्रशिक्षण दिया। वे दोनों आश्रम में और अयोध्या नगर में जाकर बीणा बजाते हुए रामायण का गायन किया करते थे। उनके गायन से श्रोता मंत्र मुग्ध हो जाते थे। इसी बीच राम ने अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय किया।

राम द्वारा यज्ञ का विचार

कुछ समय बाद राम ने राजसूय यज्ञ करने का विचार किया। लेकिन भरत इस यज्ञ के पक्ष में नहीं थे। लक्ष्मण ने अश्वमेध यज्ञ का विचार दिया जो राम और भरत दोनों को पसंद आया।

राम के आदेश से अश्वमेध यज्ञ की तैयारी होने लगी। यज्ञ के लिए सुग्रीव, विभीषण आदि को भी बुलावा भेजा गया। अनेक राजा, ऋषि, ब्राह्मण आदि को निमंत्रण भेजा गया।

Read Also  राम अयोध्या लौटने पर सबसे पहले किससे मिले?-भाग 60

सीता की स्वर्ण प्रतिमा 

नियम के अनुसार अगर किसी यज्ञ का यजमान अर्थात जिसने यज्ञ करने की दीक्षा ली हो, विवाहित या गृहस्थ हो तो उसे पत्नी सहित यज्ञ का संकल्प लेना पड़ता था। राम विवाहित तो थे लेकिन पत्नी साथ नहीं थी। इसलिए यज्ञ सम्पन्न करने के लिए उन्हें दूसरा विवाह करने का सुझाव दिया गया। पर उन्होने इसे नहीं माना। इसके बदले उन्होने सीता की स्वर्ण प्रतिमा बनवाया। जहां पत्नी की आवश्यकता होती वहाँ सीता के स्थान पर उनकी स्वर्ण प्रतिमा को बैठाया जाता था।

यज्ञ की तैयारी

राम ने नैमिषारण्य में गोमती नदी के तट पर विशाल यज्ञ मण्डप बनाने की आज्ञा दी। अश्वमेध यज्ञ के नियम के अनुसार विधिवत रूप से पूजा इत्यादि कर काले रंग का एक अश्व (घोड़ा) छोड़ा गया। लक्ष्मण को इस अश्व की रक्षा का दायित्व देकर सेना सहित राम स्वयं नैमिषारण्य गए जहाँ यज्ञ होना था। संपूर्ण तैयारी कर यज्ञ का कार्य आरंभ हुआ।

नैमिषारण्य में राम के अश्वमेध यज्ञ में वाल्मीकि ऋषि का आना

इस यज्ञ में वाल्मीकि ऋषि भी अपने शिष्यों के साथ आए थे। राम के अतिरिक्त वहाँ आए अन्य अनेक लोग भी उनका बहुत सम्मान करते थे। उन्होने अपने दो शिष्यों- कुश और लव, को यज्ञ स्थल के आसपास जन समूह में घूम-घूम कर बीणा की धुन पर रामायण काव्य का पाठ करने के लिए कहा। उन्होने उन्हे यह भी बताया कि अगर कोई उनके माता-पिता के विषय में पूछे तो विनम्रता से केवल इतना कहे कि वे महर्षि वाल्मीकि के शिष्य है।

यज्ञ में कुश-लव द्वारा रामायण का गायन

वाल्मीकि के आदेश से उनके दोनों शिष्य (कुश-लव) रामायण काव्य का गान करने लगे। उनका गान गंधर्व (संगीत) विद्या और काव्य विद्या दोनों ही दृष्टि से उत्कृष्ट था। दोनों गायक बच्चों के मधुर स्वर और गायन कला श्रोताओं का मन मोह लेते थे।

Read Also  शिव रुद्राष्टकम

उन दोनों का गायन राम ने भी सुना। उनके संगीत कौशल से उन्हे बड़ा कौतूहल हुआ। यज्ञ के कर्मकांड से समय मिलने पर उन्होने राजाओं, ऋषियों, वैयाकरणों (व्याकरण के ज्ञाता), संगीतज्ञों इत्यादि को बुलवाया। इन सब के समक्ष दोनों बालकों को काव्य गाने के लिए कहा।

दोनों बालकों के अद्भुद गायन से सभा में उपस्थित सभी लोग आनंद विभोर हो गए। लोग कहने लगे “इन दोनों बालकों की आकृति रामचंद्र से बिल्कुल मिलती-जुलती लगती है। अगर इनके सिर पर जटा और शरीर पर वल्कल वस्त्र न होते तो ये राम जैसे ही लगते।”

लव-कुश द्वारा पुरस्कार को अस्वीकार करना

राम ने पुरस्कार स्वरूप अठारह हजार स्वर्ण मुद्रा दोनों बालकों को देने के लिए भरत से कहा। भरत जब दोनों भाइयों को अलग-अलग यह राशि देने गए, तो दोनों ने कहा “इस धन की हमें क्या आवश्यकता है। हम वनवासी हैं। जंगली फल-मूल से जीवन निर्वाह करते हैं। सोना-चाँदी लेकर हम वन में क्या करेंगे।”

उनके ऐसा कहने पर समस्त श्रोताओं सहित राम भी विस्मित हो गए। सब को उन दोनों के विषय में जानने के लिए उत्सुकता हुई। वे यह भी जानना चाहते थे कि इस काव्य को किस ने लिखा और उन दोनों ने कहाँ से सीखा है।

रामायण का नियमित गायन

उनके पूछने पर दोनों भाइयों ने इस काव्य के रचयिता ऋषि वाल्मीकि को बताया, जो उनके यज्ञ स्थल पर उपस्थित थे। उन्होने बताया कि यह काव्य 500 सर्गों और छह काण्डों का है। उन दोनों ने यह भी बताया कि वाल्मीकि ने इन छह काण्डों के अतिरिक्त उत्तर काण्ड की रचना भी की थी।

Read Also  राम चित्रकूट छोड़ कर दंडकारण्य क्यों गए और कितने दिन वहाँ रहे?- part 24

अगले दिन भी इसी तरह दोनों भाइयों ने रामायण सुनाया। कई दिनों तक यह गायन चला। यज्ञ के कर्मकांड से निवृत होकर राम समस्त सभा के साथ दोनों बालकों का गायन सुनते थे। वे प्रतिदिन 20-20 सर्ग सुनाते थे।

उनके इसी गायन से सभा में उपस्थित राम सहित सभी लोगों को पता चला कि वे दोनों राम के ही बेटे थे।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top