महाभारत क्या है?- part 1

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महाभारत क्या है?

महाभारत एक महाकाव्य है यानि गाने योग्य श्लोक के रूप में लिखा गया एक विशाल ग्रंथ है, जिसे इसके महत्व के कारण ‘पंचम वेद’ भी कहते हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा ग्रंथ है। 

महाभारत की विषय वस्तु क्या है?

इसमें मुख्य रूप से कुरु राजवंश की दो शाखाओं- कौरवों और पांडवों के बीच के युद्ध का वर्णन है। इस युद्ध में स्वयं भगवान कृष्ण ने अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाया था।

पर, यह महाकाव्य युद्ध में जीत पर खत्म नहीं होता, पांडवों की मृत्यु पर भी यह खत्म नहीं होता, उनके मृत्यु के बाद के विषय में बताने के बाद फिर पृथ्वी पर धर्म के नहीं पालन करने पर लेखक द्वारा अफसोस जाहिर करने के बाद खत्म होता है। इससे स्पष्ट होता है कि यह केवल युद्ध गाथा नहीं बल्कि इससे बहुत अलग और बहुत विशद है।

महाभारत महाकाव्य में केवल युद्ध नहीं बल्कि कुरु वंश की परंपरा, पांडवों और कौरवों के अतिरिक्त अन्य अनेक राजाओं का वर्णन आदि है। इसमें अनेक आख्यान, उपाख्यान और उपदेशों का वर्णन है। तात्कालीन राजनीति, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक आदि स्थितियों के विषय में भी यह ग्रंथ बहुत कुछ बताता है। इस ग्रंथ में सामान्य मानवीय भावनाओं और कमियों का बड़ी ही खूबी से काव्यमय वर्णन किया गया है।

किसने इसकी रचना की, किसने इसे लिखा और किसने इसे सुनाया- यह विवरण भी इसमें दिया गया है।

पांडवों की मृत्यु के बाद कुरु वंश का और भगवान कृष्ण की मृत्यु के बाद यदु वंश का क्या हुआ, इस महाविनाश के बाद फिर किस तरह इन दोनों महान वंश ने अपने अस्तित्व को बचाए रखा, यह सब उल्लेख भी इस ग्रंथ में है।    

इसे इतना महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है?

1. महाभारत में एक महान युद्ध का वर्णन मात्र नहीं बल्कि गीता का ज्ञान भी है। श्रीमद भगवत गीता, श्रीहरिवंश पुराण, विष्णु सहस्त्रनाम, शिव सहस्त्र नाम इत्यादि इसके ही भाग हैं। धर्म व्याधगीता, भीष्म द्वारा युधिष्ठिर को दिया गया ज्ञान, युधिष्ठिर-यक्ष संवाद (यक्ष प्रश्न) सहित अनेक ऐसे प्रसंग हैं जिसमें अनेक दृष्टियों से ऐसे विषयों पर विचार किया गया है जो प्रतिदिन के जीवन से संबंध रखते हैं। इसमें धर्म, प्रशासनिक-राजनीतिक व्यवस्था से लेकर युद्ध नीति तक, तपस्या से लेकर अर्थ व्यवस्था तक, सामाजिक व्यवस्था से लेकर स्त्री-पुरुष के नितांत निजी संबंध तक शामिल हैं। इसके एक लाख से अधिक श्लोकों में इतने विविध विषयों का वर्णन है कि कहा जाता है कि जो विषय महाभारत में नहीं है वह दुनिया में नहीं है।  

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2. कृष्ण और उनके यदु वंश के विषय में जानने का भी यह एक आधारभूत काव्य है।

3. ऐतिहासिक दृष्टि से उस समय के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, बौद्धिक, वैज्ञानिक, धार्मिक इत्यादि स्थितियों की महवपूर्ण जानकारी मिलती है।

4. सावित्री-सत्यवान, पुरुरवा-उर्वशी, शकुंतला-दुष्यंत, नल-दमयंती जैसी अनगिनत कहानियाँ जो भारतीय जनमानस में हजारों वर्षों से प्रचलित हैं, उसका मूल स्रोत महाभारत ही है।  

इसके अन्य नाम कौन से हैं?

इस महाकाव्य का मूल नाम ‘जय संहिता’ या ‘जय’ था। भरत वंश के दो शाखाओं के बीच के महान युद्ध का इसमें वर्णन है इसलिए इसे ‘आद्य भारत’ ‘भारत’ या ‘महाभारत’ भी कहा जाने लगा। 

इसमें कितने पर्व हैं?

महाभारत में अध्याय के लिए पर्व शब्द आया है। कुल 18 पर्व इसमें है जिनके 100 उप पर्व भी हैं। इन पर्वों के नाम इस प्रकार हैं:

  • 1. आदि पर्व
  • 2. सभा पर्व
  • 3. अरण्यक पर्व
  • 4. विराट पर्व
  • 5. उद्योग पर्व
  • 6. भीष्म पर्व
  • 7. द्रोण पर्व
  • 8. कर्ण पर्व
  • 9. शल्य पर्व
  • 10. सौप्तिक पर्व
  • 11. स्त्री पर्व
  • 12. शांति पर्व
  • 13. अनुशासन पर्व
  • 14. अश्वमेधिका पर्व
  • 15. आश्रमवासिका पर्व
  • 16. मौसुल पर्व
  • 17. महाप्रस्थानिक पर्व
  • 18. स्वर्गारोहण पर्व

इसके अलावा इसमें हरिवंश पर्व भी है जिसे खिलभाग कहते हैं। यह परिशिष्ट की तरह है। इसमें भगवान कृष्ण के वंश का वर्णन है।

इसमें कितने श्लोक हैं?

इसमें उपाख्यानों सहित एक लाख (84000+16000 हरिवंश पुराण) श्लोक हैं। उपाख्यान को छोड़ कर 24000 श्लोक हैं जिन्हें ‘भारत संहिता’ कहते हैं। अनुक्रमणिका का एक संक्षिप्त अध्याय है जिसमें मात्र 150 श्लोक हैं।

कहा जाता है कि वेदव्यास ने 60 लाख श्लोक की एक दूसरी संहिता बनाई। उसके 30 लाख देवलोक में समादृत हो रहे हैं, पित्र लोक में 15 लाख और गंधर्व लोक में 14 लाख हैं। मनुष्य लोक में एक लाख श्लोक का ग्रंथ है। नारद ने देवताओं को और असित देवल ने पित्रों को इसका श्रवण कराया। शुकदेव जी ने गंधर्व, यक्ष और राक्षसों को इसकी कथा सुनाई। मनुष्यों को वैशम्पायन जी ने इसका प्रवचन किया।     

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महाभारत का सबसे प्रसिद्ध श्लोक कौन सा है?

महाभारत का और उसके प्रत्येक पर्व का आरंभ इस श्लोक से होता है–

नारायणम नमसकृत्य नरं चैव नरोत्तमम।

देवीम सरस्वतीम व्यसम ततो जयमूदिरयेत

अर्थात बदरिकाश्रम निवासी प्रसिद्ध ऋषि श्री नारायण और श्री नर (अंतर्यामी नारायणस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण और उनके नित्यसखा नरस्वरूप नरश्रेष्ठ अर्जुन), उनकी लीला प्रकट करने वाली भगवती सरस्वती और उसके वक्ता महर्षि वेदव्यास को नमस्कार कर (आसुरी सम्पत्तियों का नाश करके अन्तःकारण पर दैवी सम्पत्तियों को विजय प्राप्त कराने वाले) जय का पाठ करना चाहिए। यहाँ ‘जय’ शब्द महाभारत के लिए आया है।

महाभारत की रचना किसने की थी?

इसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। ये महर्षि पराशर और निषाद कन्या सत्यवती के पुत्र थे। इनका असली नाम कृष्ण द्वैपायन था। वेदों का संकलन कर उसे चार भागों में विभक्त करने के कारण ये वेद व्यास कहलाए। इनके विषय में विशेष बात थी कि ये न केवल इस ग्रंथ के रचयिता बल्कि इसके एक मुख्य पात्र भी थे। धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर के जैविक पिता यही थे। अर्थात महाभारत का युद्ध इनके पौत्रों के बीच ही हुआ था। युधिष्ठिर के बाद परीक्षित और परीक्षित की मृत्यु के बाद उनके पुत्र जनमेजय राजा बने। जनमेजय के सर्प यज्ञ के समय तक वेद व्यास जीवित और स्वस्थ्य थे।

इसके लेखक कौन थे?

इसके लेखक भगवान गणेश थे। गणेश जी इस शर्त पर लिखने के लिए तैयार हुए थे कि वह यह ग्रंथ तभी लिखेंगे जबकि लिखते समय उनकी लेखनी रुके नहीं। वेद व्यास यह शर्त इस शर्त पर माने कि वे जिस भी श्लोक की रचना कर बोलेंगे गणेश जी उसका अर्थ समझ कर ही लिखेंगे। दोनों इस शर्त पर तैयार हुए थे। इसलिए व्यास जी ऐसे कठिन श्लोक बना देते थे जिसके एक से अधिक अर्थ संभव था। जब तक गणेश जी उसका अर्थ समझते तब तक व्यास दूसरा श्लोक बना लेते थे। इसके श्लोक इतने गूढ़ हैं कि व्यास जी स्वयं कहते हैं ‘इस ग्रंथ में 8800 श्लोक ऐसे हैं जिनका अर्थ मैं समझता हूँ शुकदेव समझते हैं और संजय समझते हैं या नहीं इसमें संदेह है। इस तरह रचना करने और लिखने का काम साथ-साथ चलता रहा। महाभारत की रचना करने में उन्हें तीन वर्ष लगा था।

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गणेश जी से इस ग्रंथ को लिखाने का सुझाव व्यास जी को ब्रह्मा जी ने दिया था। उन्होने ही कहा था कि चूंकि तुम सत्यवादी हो और तुमने अपनी रचना को ‘काव्य’ कहा है इसलिए यह काव्य ही कहा जाएगा। गणेश जी ने ‘ॐ’ कह कर अपनी स्वीकृति दी।

इसे किसने सबसे पहले सुनाया था?

भगवान गणेश ने महाभारत को लिखा था लेकिन वह लिखित प्रति कहाँ थी और उसका क्या हुआ इसका कोई उल्लेख महाभारत में नहीं है। वेदव्यास ने अपने पुत्र शुकदेव को अपने द्वारा रचित चारों वेदों तथा ‘पांचवें वेद’ महाभारत का अध्ययन करवाया। इसके बाद इनका अध्ययन अपने शिष्यों सुमन्तु, जैमिनि, पैल, वैशम्पायन को कराया। उनके इन सभी शिष्यों ने पृथक पृथक महाभारत पर संहिता की रचना की थी। उनके शिष्य वैशम्पायन ने जनमेजय के सर्प यज्ञ में महाभारत की कथा सबको सुनाया। 

सर्प यज्ञ में वैशम्पायन जी से अन्य लोगों के साथ-साथ रोमहर्षण (लोमहर्षण) सूत ने भी इसे सुना जिसे उन्होने अपने पुत्र उग्रश्रवा सूत को सुनाया। उग्रश्रवा सूत ने नैमिषारण्य में 12 वर्षों तक चलने वाले शौनक मुनि के सत्र में इसे सुनाया जहां से इस कथा का प्रचार-प्रसार हुआ। 

उग्रश्रवा सूत महाभारत को इतिहास कहते हुए उसका वर्णन करते हैं और वेद व्यास को इसका रचयिता बताते हैं। वे इस ग्रंथ, इसके विषय वस्तु, शब्दविन्यास आदि की प्रशंसा करते हैं। उनके अनुसार हिमालय की तलहटी में पर्वतीय गुफा के भीतर ध्यान में सबकुछ प्रत्यक्ष देखने के बाद व्यास जी ने इस ग्रंथ की रचना की थी। फिर वे सृष्टि के आरंभ का वर्णन करते हैं। वे यह भी कहते हैं की महर्षि वेद व्यास ने इस महान ज्ञान का संक्षेप और विस्तार दोनों ही रूपों में वर्णन किया है क्योंकि संसार में विद्वान पुरुष दोनों की रीतियों को पसंद करते हैं।

महाभारत की रचना कब की गई?

इसमें वर्णित ज्योतिषीय, भौगोलिक, राजनीतिक स्थितियों और पुरातात्त्विक, साहित्यिक, विदेश स्रोत एवं भाषायी प्रमाणों के आधार पर यह माना जाता है इसकी रचना 3100-1200 ईसा पूर्व हुई थी। लेकिन अन्य पुराने ग्रन्थों की तरह यह ग्रंथ भी मौखिक परंपरा से ही बहुत दिनों तक प्रचलित रहा। इस दौरान इसकी मूल कथा के कई अलग-अलग संस्कारण भी देश के अलग-अलग भागों और समुदायों में प्रचलित हो गए। उदाहरण के लिए जैन महाभारत भी है जिसकी मूल कथा इससे बिलकुल अलग है। उत्तर और दक्षिण भारत में प्रचलित संस्करणों में भिन्नता है। माना जाता है कि अपने वर्तमान रूप में यह 600-200 ईसा पूर्व में आया। पर इसके पात्रों और इसमें एक लाख से अधिक श्लोक होने की चर्चा कई देशी, विदेशी साहित्य में मिलता है।  

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