कृष्ण करे तो रास लीला, हम करें तो कैरेक्टर ढ़ीला, ये मज़ाक और ये गीत आप लोगों ने जरूर सुना होगा।
मेरी एक दोस्त एक दिन बड़ी गुस्से में थी कि समाज, धर्म, भगवान सब पित्रासत्तात्मक यानि पुरुष प्रधान है, महिलाओं को तो केवल वस्तु की तरह समझा जाता है, महिलाओं का तो अपना कोई अस्तित्व ही नहीं जैसे, इत्यादि, इत्यादि। उसने भगवान कृष्ण का उदाहरण देते हुए कहा वो हजारों पत्नी और उनके अलावा प्रेमिका रख सकते थे, लेकिन उनकी पत्नियों को ऐसा अधिकार क्यों नहीं था? रास लीला रचाने वाले और स्त्रियों के कपड़े चुराने वाले को समाज भगवान मानता था क्योंकि वह समाज स्वयं भी ऐसा था, आदि आदि। उसकी तरह अन्य बहुत लोगों को भी कृष्ण और समाज के पित्रासत्तात्मक होने से बहुत समस्या होती है।
इसलिए भागवत पढ़ते हुए मैं सोची देखती हूँ ये आरोप सच हैं क्या? स्त्रियॉं के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण के विचार एवं व्यवहार इन पाँच पॉइंटस में देखते हैं:
1. रास लीला
रास के समय कृष्ण की उम्र, कृष्ण और गोपियों की संख्या, कृष्ण-गोपियों के बीच आत्मा-परमात्मा, भक्त-भगवान या पुरुष-प्रकृति आदि सम्बन्धों वाली बात को अगर किनारे रख देते हैं, और कृष्ण और गोपियों को केवल प्रेमी-प्रेमिका के रूप में देखें, तो यह क्या संकेत करता है।
भागवत के अनुसार रास लीला को तीन भागों में बांटा गया है-
पहले कृष्ण के बांसुरी बाजने पर गोपियाँ वहाँ आती हैं, दोनों पक्षों में कुछ बातें होती हैं, फिर वे सब मिल कर घूमते-फिरते हैं। इसे रास कहा गया है।
इसके बाद कुछ देर के लिए कृष्ण उनके बीच से अन्तर्धान हो जाते हैं। इस दौरान गोपियाँ कृष्ण के प्रति प्रेम, विरह और भक्ति की अद्भुत मिसाल कायम करतीं हैं।
उन सबकी व्याकुलता और प्रेम देख कर कृष्ण उनके बीच फिर से प्रकट होते हैं। कुछ वार्ता के बाद महारास होता है। इसमें जितनी गोपियाँ थीं, उतने ही रूप में कृष्ण प्रकट हो गए। एक-एक गोपी और एक-एक कृष्ण गोल घेरे बना कर एक साथ में अद्भुत कलात्मक नृत्य करते हैं। मधुर स्वर में गायन, कृष्ण की बांसुरी, गोपियों की पाजेब ये सब आवाजें, शरद पूर्णिमा की चाँदनी रात में साँवले कृष्ण और गोरी गोपियों के रूप और शृंगार इत्यादि से ऐसा सुंदर सामान बंधा कि देवता लोग भी उसे देखने आए।
ये तीनों स्टेज ही रास कहलाता है। रास से पहले कृष्ण और गोपियों में हुए वार्ता इस संबंध में बहुत रोचक है।
इन बातचीत का जो सार है वह यह है कि भगवान पूर्णकाम हैं अर्थात उन्हें किसी चीज की कामना नहीं है। वे पूर्णकाम परम ब्रह्म हैं, ये बात गोपियाँ भी जानती थी। लेकिन यहाँ प्रश्न कृष्ण के स्वयं के कामना की नहीं बल्कि गोपियों के कामना की थी। कृष्ण ने एक रात के लिए उनकी कामना पूरा किया जैसा कि उन्होने पहले ही वस्त्र हरण के समय गोपियों को वरदान दे रखा था। साथ ही उन्हें प्रेम की यह परिभाषा भी बताया कि जिसमें कुछ पाने की अभिलाषा नहीं हो। कृष्ण गोकुल से जाने के बाद केवल एक बार किसी तीर्थ में गोकुल की गोपियों और अन्य लोगों से मिले थे।
यहाँ प्रश्न यह है कि जहां स्त्री पुरुष का संबंध होता है, वहाँ हमें हमेशा ऐसा क्यों लगता है, स्त्री केवल देने वाली होती है, कुछ चाहती नहीं है। फेमिनिस्ट यानि स्त्रीवादी लोग क्यों हमेशा इस संबंध को सर्विस प्रोवाइडर और consumer की नजर से ही देखते हैं? अगर स्त्री की सामाजिक मर्यादा का ख्याल रखते हुए स्त्री की इच्छा पूरा करना feminism है तो मेरे विचार में रास शायद उस विचार का एक बड़ा उदाहरण है, जिसे आज feminism कहते हैं।
2. वस्त्र हरण
गोपियाँ कृष्ण को प्रेमी या पति रूप में पाना चाहती थीं और इसलिए उन्होने कात्यायनी देवी का एक अनुष्ठान किया था। अनुष्ठान में वे सब कुछ सही कर रही थीं लेकिन सार्वजनिक स्थान पर जलाशय में निर्वस्त्र स्नान किया करती थी। यह लोक और धर्म की मर्यादा का उल्लंघन था। कृष्ण जानते थे वे सब लापरवाही से पर निर्दोष आशय से ऐसा कर रहीं थी। कृष्ण उन्हें उनकी गलती का एहसास कराने के लिए नहाते समय उनके कपड़े लेकर पेड़ की ऊंची टहनी पर चढ़ गए। थोड़े हंसी-मज़ाक के बाद उन्होने गोपियों को उनकी इस गलती की तरफ ध्यान दिलाया। गोपियों ने भी अपनी भूल मानी।
आधुनिक फेमिनिस्ट शायद इस घटना को महिला स्वतन्त्रता की दृष्टि देखते हैं। क्या इसे महिला सुरक्षा के दृष्टि से देखा जा सकता है? क्या किसी स्त्री, जिसके सुरक्षा की चिंता उसके किसी पुरुष संबंधी या मित्र को हो, के सलाह को स्त्री को दबाने या शोषित करने के अतिरिक्त किसी और दृष्टिकोण से देखा नहीं जा सकता?
3. कृष्ण के विवाह
कृष्ण ने 16 हजार 108 स्त्रियों से विवाह किया था। इनमें से आठ पत्नियों से विवाह उनकी मर्जी से और अगर उनके पिता ने कोई शर्त रखा हो तो उसे पूरा कर के किया। रुक्मिणी ने स्वयं उन्हें पत्र लिखा कि अगर वे उनका हरण कर विवाह नहीं करेंगे तो वह अपने जीवन का अंत कर लेंगी।
उन्होने एक साथ जिन 1 हजार 100 स्त्रियों से विवाह किया वे सब उनके द्वारा कैद से मुक्त कराई गईं थीं। उनके समाज और परिवार में पता नहीं उनके साथ कैसे व्यवहार होता। कृष्ण के रूप और गुणों से भी वे मोहित थीं। वे सब कृष्ण से विवाह करना चाहती थीं।
वास्तव में कृष्ण का कोई भी विवाह उन्होने अपनी खुशी के लिए नहीं बल्कि अपने होने वाली पत्नियों की खुशी के लिए, उनकी इच्छा पूरा करने के लिए अथवा उनके सम्मान की रक्षा के लिए किया था।
इतना ही नहीं उन्होने अपनी हर पत्नी के साथ समान व्यवहार रखा। भागवत में प्रसंग आता है जब नारद जी उनका पारिवारिक जीवन देखने द्वारका गए, उन्होने देखा कृष्ण अनेक रूप में प्रकट होकर अपनी सभी पत्नियों के साथ सामान्य दाम्पत्य जीवन बिता रहे थे।
संदेश स्पष्ट है, अगर आप उनकी तरह अधिक शादी करना चाहते हो तो ऐसा तभी करो जबकि उनकी तरह ही अनेक रूप में प्रत्येक पत्नी के साथ रह सको। अगर अनेक प्रेमिका के साथ अनेक रूप में रास कर सको तभी अनेक प्रेमिका रखो। अगर ऐसा संभव नहीं हो तो एक से ही खुश रहो।
4. कृष्ण का द्रौपदी से संबंध
द्रौपदी का वास्तविक नाम कृष्ण जैसा ही, अर्थात कृष्णा था। द्रुपद की पुत्री होने के कारण उसे लोग द्रौपदी कहते थे। वह कृष्ण के दोस्त और फुफेरे भाई अर्जुन की पत्नी थी। लेकिन दोनों में मित्रवत संबंध था। कृष्ण उसे सखी कहते थे। वह जब भी किसी मुसीबत में होती तो सबसे पहले कृष्ण को ही याद करती थी। कृष्ण ने कभी उन्हे निराश भी नहीं किया। हर समय उनकी समस्या का समाधान किया।
5. कृष्ण और सुभद्रा का संबंध
सुभद्रा कृष्ण की सौतेली बहन थी लेकिन दोनों भाई-बहन में बहुत सहज और दोस्ती वाला रिलेशन था। जब उन्हें पता चला कि उनकी प्यारी बहन उनके मित्र अर्जुन से प्रेम करती है तो हर हालत में वे उन दोनों की शादी करवाना चाहते थे। हालांकि उनके बड़े भाई बलराम इस विवाह के पक्ष में नहीं थे। पर कृष्ण के प्रयास से दोनों पहले घर से भागे और फिर विधिवत रूप से उन दोनों का विवाह हुआ
कृष्ण ने अपने जीवन में आने वाली सभी स्त्रियों का ख्याल रखा, भले ही वे उनकी प्रेमिका गोपियाँ हो, उनके प्रति आसक्त कुब्जा हो, मित्र द्रौपदी, पत्नियों, पालन करने वाली माँ यशोदा और जन्म देने वाली वाली माँ देवकी, गुरु पत्नी, बहन सुभद्रा- सभी के सम्मान, और इच्छा का पूरा ख्याल रखा। खुद उन्हें इच्छा नहीं थी लेकिन फिर भी उन्होने उन सबकी इच्छा को पूरा किया।
युद्ध में वे ‘macho मैन’ थे, लेकिन स्त्रियों के बीच आलता लगाने, नर्तक की तरह त्रिभंगी मुद्रा में खड़े होकर बांसुरी बजाने में उनका ‘पौरुष दर्प’ आड़े नहीं आता था।
इसलिए मेरे विचार में, अगर किसी महिला इच्छा को सम्मान देना फेमिनिज़्म है, तब कृष्ण फेमिनिस्ट थे, किसी महिला की सुरक्षा का ख्याल रखना फेमिनिज़्म है तो कृष्ण फेमिनिस्ट थे, किसी महिला को बराबर मानना फेमिनिज़्म है, तो कृष्ण फेमिनिस्ट थे।
पर अगर महिला-पुरुष संबंध में पुरुष को हमेशा एक ‘उपभोक्ता (consumer)’ मानना फेमिनिज़्म है, तब संभवतः वे फेमिनिस्ट नहीं थे।