पाण्डु क्यों राजगद्दी छोड़ कर वन में चले गए?- part 13

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महाराज पांडु के नेतृत्व में एक बार फिर हस्तिनापुर का कुरु राज्य फलने-फूलने लगा। इसकी कीर्ति बढ़ने लगी। लेकिन एक ऋषि के शाप ने पांडु को विरक्त बना दिया। वह अपनी दोनों पत्नियों के साथ वन में तपस्या करने चले गए। ऐसी स्थिति में धृतराष्ट्र को राजा बनाना पड़ा। इससे धृतराष्ट्र की महत्वाकांक्षा को बल मिला। साथ ही यह कानूनी प्रश्न उठा कि राजसिंहासन का उत्तराधिकारी कौन हो, पांडु के पुत्र या धृतराष्ट्र के?

पांडु को शाप

शाप की कथा इस प्रकार है। एक दिन पांडु अपनी दोनों पत्नियों- कुंती और माद्री, अनेक मंत्रियों एवं सहयोगियों तथा कुछ सैनिकों के साथ शिकार के लिए गए। उन्होने वन में एक मृग युगल को समागम करते समय बाणों से बिद्ध कर डाला। यह मृग युगल वास्तव में ऋषि युगल थे।

ऋषि के अनुसार यद्यपि क्षत्रिय राजा के लिए मृगों को मारना धर्म के अनुकूल था। लेकिन एकांत वन के भीतर समागम कर्म में लगे हुए मृग को मारना अधर्म था। राजा को कम-से-कम तब तक प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए थे जब तक वह उस कर्म से निवृत हो जाते। इसलिए उन्होने राजा पांडु को शाप दे दिया कि जब वह किसी स्त्री के साथ समागम करेंगे तब उनकी मृत्यु हो जाएगी। उन्होने यह भी शाप दिया कि ‘अंत काल में जिस प्रिय पत्नी के साथ समागम करोगे वही यमलोक में जाने पर भक्तिभाव से तुम्हारा अनुसरण करेगी।’ शाप देने के बाद उस ऋषि युगल की मृत्यु हो गई।

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पांडु द्वारा सिंहासन को त्याग कर वन में तपस्वी जीवन बिताने का निश्चय

राजा पांडु इस समस्त घटनाक्रम और अपने द्वारा अनजाने में हुए इस भयंकर अपराध से बहुत क्षुब्ध हो गए। उन्हें इस बात का भी खेद था कि अब वह संतान उत्पन्न नहीं कर सकते इसलिए उनके बाद उनका राजवंश नहीं चल पाएगा। इसलिए उन्होने समस्त सांसरिक मोह का त्याग कर वन में रह कर अपने पिता वेद व्यास की तरह कठोर तपस्या का जीवन बिताने का निश्चय किया। उन्होने अपनी दोनों पत्नियों को राजमहल में लौटने के लिए कहा।

कुंती और माद्री का उनके साथ रहने का निश्चय

लेकिन कुंती और माद्री उनके बिना राजमहल लौटने के लिए तैयार नहीं हुईं। वह भी पांडु के साथ वन में रह कर उनके अनुरूप ही तपस्या करना चाहती थीं। अंततः पांडु इसके लिए तैयार हो गए।

उन तीनों ने अपने शरीर के सभी आभूषण उतार कर ब्राह्मणों को दान कर दिया। शेष धन को सेवकों के साथ राजधानी भेज दिया।

हस्तिनापुर सूचना भेजना

राजा पांडु और दोनों रानी वन में ही तपस्वी का वेश बना कर रहने लगे। साथ आए सेवकों, मंत्रियों और सैनिकों को वन में घटे समस्त घटनाक्रम और उनके संन्यास लेने का वृतांत बताने के लिए राजधानी हस्तिनापुर भेज दिया। वे सभी दुखी होकर राजधानी लौट आए और समस्त वृतांत कह सुनाया। यह समाचार सुनकर धृतराष्ट्र, भीष्म आदि सभी राजपरिवार के लोग और राज्य की प्रजा शोक में डूब गई। कुरु वंश फिर से मुरझाने लगा।

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