कंस श्रीकृष्ण को अपना शत्रु क्यों मानता था? -भाग 4

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कंस का देवकी से वैर मानना

कंस अपने चाचा देवक की पुत्री यानि अपनी चचेरी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था। देवकी का विवाह शूरसेन वंश के वसुदेव से हुआ। भगवान ने देवताओं को पहले ही बता दिया था कि वे यदु वंश में देवकी-वसुदेव के पुत्र के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेंगे। कंस को देवकी से बहुत स्नेह था और हो सकता था देवकी के पुत्र को कंस को मारने का कोई बहाना नहीं मिलता। इसलिए कंस के मन में अपनी बहन की संतान के लिए शत्रुता की भावना भरना जरूरी था। इसका माध्यम बना एक आकाशवाणी। यह कथा इस प्रकार है:  

देवकीवसुदेव विवाह और आकाशवाणी

उग्रसेन के भाई देवक की पुत्री देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ। कंस को अपनी चचेरी बहन देवकी से बहुत स्नेह था। वसुदेव का भी वह बहुत आदर करता था। इसीलिए देवकी जब विवाह के बाद अपने पति वसुदेवजी के साथ ससुराल जाने लगी तो कंस स्वयं उनके रथ को हाँकने लगा। इसी समय उसे संबोधित करते हुए आकाशवाणी हुई “अरे मूर्ख, जिसको तू रथ में बैठा कर लिए जा रहा है, उसकी आठवें गर्भ की संतान तुझे मार डालेगी।”

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कंस का देवकी को मारने के लिए उद्दत होना

आकाशवाणी सुनते ही कंस ने अपनी तलवार निकाल लिया और देवकी को मारने के लिए उद्दत हो गया। नवविवाहिता देवकी के पति वसुदेव ने देवकी की रक्षा के लिए अनेक तरह से कंस को समझाया। लेकिन वह अपनी बहन देवकी को मारने के अपने हठ पर अड़ा रहा।

वसुदेव जी द्वारा संतान सौंपने का वचन      

कोई और उपाय नहीं देख कर देवकी की तत्काल मृत्यु रोकने के लिए वसुदेवजी ने कंस से कहा कि वे देवकी के पुत्रों को लाकर कंस को दे देंगे क्योंकि कंस को खतरा देवकी से नहीं बल्कि उसके पुत्र से था।  

कंस जानता था कि वसुदेव सत्यवादी है और अपने वचन को जरूर पूरा करेंगे। साथ ही उनकी बातें भी तर्कसंगत थी। इसलिए वह देवकी को इस शर्त पर जीवित छोड़ने के लिए मान गया कि वसुदेव उनके पुत्रों को लाकर उसे देंगे।

आकाशवाणी क्यों हुई?

इस समस्त घटनाक्रम से एक प्रश्न उठता है, ऐसी आकाशवाणी क्यों हुई जिससे कंस का अत्याचार और अपनी ही प्रजा और संबंधियों से शत्रुता बढ़ गई।

इसका कारण यह था कि भगवान अकारण किसी पर आक्रमण नहीं करते। गीता के अनुसार भगवान भी किसी को सजा या पुरस्कार नहीं देते हैं बल्कि व्यक्ति अपने कर्म फल से स्वयं इसके लिए हकदार हो जाता है। कंस और उसके मित्रो का अत्याचार तो पहले ही बहुत था जिस कारण भगवान ने देवताओं को धरती पर आने का वचन दिया था। लेकिन जब भगवान धरती पर आते तो भी मानव धर्म का पालन करते हुए उस पर अकारण आक्रमण नहीं करते। इस आकाशवाणी ने कंस को स्वयं आगे बढ़ कर शत्रुता करने और अपनी मृत्यु को आमंत्रित करने का कारण दे दिया। रामावतार के समय भी राम ने किसी पर पहले या अकारण आक्रमण नहीं किया। जब किसी ने स्वयं उनसे शत्रुता की और उनपर आक्रमण किया तो उन्होने उसका संहार किया। कृष्णावतार में भी आकाशवाणी से शुरू हुई इस शत्रुता को समय-समय पर देवर्षि नारद ने अपनी बातों से और बढ़ाया।

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कंस का देवकी के पहले पुत्र को पहले जीवित छोड़ना 

इसके बाद देवकी और वसुदेव प्रसन्नतापूर्वक अपने घर आ गए। देवकी के सती-साध्वी होने कारण सभी देवताओं का उनके शरीर में निवास था। समय आने पर उन्हें पुत्र हुआ। पुत्र का नाम रखा गया कीर्तिमान। अपने वचन का पालन करते हुए वसुदेव जी ने उसे लाकर कंस को दे दिया।

वसुदेव जी की यह सत्यनिष्ठा देख कर कंस बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने वसुदेव जी से कहा कि वे उस नन्हें से सुकुमार बालक को ले जाए क्योंकि आकाशवाणी के अनुसार उसे देवकी के केवल आठवें पुत्र से खतरा था अन्य पुत्रों से नहीं। वसुदेवजी पुत्र को लेकर लौट आए।

नारद जी द्वारा कंस को देवताओं के उसके वध की तैयारी के विषय में बताना

इधर नारद कंस के पास आए और उसे बताया कि बृज भूमि में रहने वाले नन्द आदि गोप, यदुवंश, वृष्णि वंश आदि में उत्पन्न सभी नर-नारी देवता है। उन्होने यह भी बताया कि देवताओं द्वारा उसके और अन्य दैत्यों के वध की तैयारी की जा रही है।

नारद जी के बातों से कंस को विश्वास हो गया कि यदुवंशी देवता हैं और देवकी के गर्भ से भगवान विष्णु ही उसका वध करने के लिए जन्म लेने वाले हैं। उसे अपने पूर्व जन्म की याद आई जब भगवान विष्णु ने उसे मार डाला था।

कंस द्वारा देवकी के सभी छह पुत्रों का मारा जाना

देवराज नारद के जाने के बाद कंस ने देवकी और वसुदेव को हथकड़ी और बेड़ियों से जकड़ कर कैद में डाल दिया। उसने उनके पहले पुत्र कीर्तिमान, जिसे उसने पहले जीवित छोड़ दिया था, और इसके बाद होने वाले सभी पुत्रों को मार डाला।

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कंस का समस्त यदुवंशियों से वैर मानना

अब कंस ने समस्त यदुवंशियों को अपना कट्टर दुश्मन मान लिया। अपने मित्रों की सहायता से वह यदुवंशियों को खत्म करने लगा। भयभीत हो कर यदु वंश के लोग अपनी जान बचाने के लिए भारतवर्ष के अन्य राज्यों में जाकर बसने लगे। इन राज्यों मे प्रमुख थे–

कुरु, पांचाल, केक, शाल्व, विदर्भ, निषध, विदेह, कोशल इत्यादि।

ऐसी ही विकट परिस्थिति में देवकी-वसुदेव के क्रमशः सातवें और आठवें पुत्र के रूप में बलराम और कृष्ण का अवतरण हुआ।

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