कंस को देवकी की संतान होने की सूचना
भगवान की आज्ञा के अनुसार महामाया ने देवकी की सातवीं संतान को उनके गर्भ से निकाल कर वसुदेव की पहली पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। रोहिणी उस समय गोकुल में नन्द जी के घर में रह रही थी। वहीं उन्होने बलराम जी को जन्म दिया। आठवीं संतान के रूप में श्रीकृष्ण आए। भगवान की प्रेरणा से वसुदेव जी उन्हें भी गोकुल में नन्द जी के यहाँ पहुंचा आए। महामाया के प्रभाव से सभी द्वारपाल अचेत हो गए और कारगार के द्वार और वसुदेव-देवकी की हथकड़ी और बेड़ियाँ अपने आप खुल गए थे। नन्द जी के घर से वे उनकी नवजात कन्या को ले आए।
इस अदला-बदली के बाद फिर सब कुछ सामान्य हो गया। कारागार के द्वार बंद हो गए। द्वारपाल जग गए। देवकी-वसुदेव हथकड़ी-बेड़ियों में फिर जकड़ गए। अब वह शिशु कन्या, जो की वास्तव में नन्द-यशोदा की पुत्री थी, एक साधारण बालिका की तरह रोने लगी। शिशु के रोने की ध्वनि सुनकर द्वारपालों की नींद खुली। द्वारपालों ने जाकर भोजराज कंस को देवकी के संतान जन्म की सूचना दी। कंस तो बड़ी आकुलता से इसकी प्रतीक्षा कर ही रहा था। सूचना मिलते ही वह अति शीघ्र से प्रसूति गृह, जो कि कारागार था, में आया।
योगमाया द्वारा कंस को चेतावनी
जब कंस बंदीगृह में आया तो यह देख कर हैरान रह गया कि आठवीं संतान के रूप में पुत्र नहीं बल्कि एक पुत्री हुई थी। देवकी ने उससे प्रार्थना की कि वह कन्या को नहीं मारे क्योंकि उसे खतरा तो पुत्र से था पुत्री से नहीं। लेकिन कंस कोई खतरा नहीं रखना चाहता था। इसलिए उसने पुत्री को भी मारने का विचार किया।
कंस ने मार डालने के उद्देश्य से उस नवजात कन्या को देवकी से छीन लिया और उसका पैर पकड़ कर बड़े ज़ोर से एक पत्थर पर दे मारा।
लेकिन वह कोई साधारण कन्या नहीं बल्कि योगमाया थी। वह कंस के हाथ से निकल कर आकाश मे चली गई और दिव्य माला, वस्त्र, चन्दन और आभूषणों से विभूषित और अपने आठ हाथों में आयुध लिए हुए प्रकट हुई। सिद्ध, चारण, अप्सरा आदि बहुत से भेंट की सामग्री लिए हुए उसकी स्तुति कर रहे थे।
योगमाया ने कंस से कहा “रे मूर्ख, मुझे मारने से तुझे क्या मिलेगा? तेरे पूर्व जन्म का शत्रु तुझे मारने के लिए किसी स्थान पर पैदा हो चुका है। अब तू व्यर्थ निर्दोष बालकों की हत्या न किया कर।” इतना कह कर वह वहाँ से अन्तर्धान हो गई। आगे चल कर यह योगमाया पृथ्वी के अनेक स्थानों पर विभिन्न नाम से प्रसिद्ध हुई।
वसुदेव-देवकी को कैद से मुक्ति
देवी योगमाया की बातें सुन सर कंस को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने वसुदेव और देवकी को कैद से छोड़ दिया। उसने अपने कृत्य पर खेद प्रकट किया और उनसे क्षमा याचना की। इसके बाद वसुदेव और देवकी अपने महल में आ गए।
कंस द्वारा अपने मंत्रियों से मंत्रणा
योगमाया की बातों से कंस की बेचैनी बढ़ गयी। रात को उसने अपने मंत्रियों से इस विषय पर मंत्रणा की। उसने उन्हे योगमाया द्वारा बताई गई बातें बताया।
मंत्रियों ने कंस को सभी नवजात बच्चों को मार डालने की सलाह दिया और अपने सहयोग का भरोसा दिलाया। उन्होने देवताओं को कमजोर करने के लिए गायों, ब्राह्मणो और ऋषियों को भी मार डालने की सलाह दिया।
कंस ने उनकी मंत्रणा मान कर उन्हे ऐसा करने की अनुमति दे दी। कंस के गुप्तचर और मित्र राज्य भर में घूम-घूम कर नवजात बच्चों को मारने लगें। समस्त यदु वंशी अपने घर बच्चे होने की सूचना छुपाते ताकि कोई बच्चे को मार न दे। धर्म-कर्म भी अत्यंत कठिन हो गया। इन अत्याचारों से सभी त्राहि-त्राहि कर उठे।
पर कंस के सामना करने की शक्ति किसी में नहीं थी सिवाय एक नवजात बच्चे को छोड़ कर जो देवकी-वसुदेव का पुत्र था और गुप्त रूप एस गोकुल में नन्द जी के घर में रह रहा था। इस बच्चे यानि कृष्ण ने अपने इस कार्य का आरंभ किया एक राक्षसी पूतना को मार कर।