ट्रैफिक जाम

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सुबह सवेरे बीच सड़क पर,

बेबस सा लाचार खड़ा हूं।

आंखों में है बॉस का चेहरा,

कानों के आवाज पड़ा है।

बाएं वाला बोल रहा है,

भाई ट्रैफिक में फंसा पड़ा हूं।

दाएं वाला बोल रहा है,

भाई लोन में फंसा पड़ा हूं।

पीछे से मैडम चिल्लाई,

मेरा बिल भी फंसा पड़ा है।

वकील साहब बोल रहे हैं,

भाई कोर्ट में फंसा हुआ हूं।

सामने वाला युगल तो बस,

आपस में ही फंसा पड़ा है।

सब हैं साथ मगर हैं अलग

मोबाइलों में ही लगे पड़े हैं।

कोई यहां कोई वहां खड़ा,

अपनी उलझन में फंसा पड़ा है।

मेरी तो औकात ही क्या जब

देश सारा फंसा पड़ा है।

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