वनवास काल में राम के प्रारम्भिक रात्री विश्राम और पहला आवास कहाँ था?- part 18

Share

अयोध्या से निकलना

राम के वनवास की अवधि की गिनती उसी दिन से शुरू हो गई जिस सुबह उनका राज्याभिषेक होने वाला था और रानी कैकेयी ने राजा दशरथ से अपने द्वारा माँगे गए वरदान की बात बताई। राज्य, प्रजाजनों और सेवकों आदि की समुचित व्यवस्था कर राम, लक्ष्मण और सीता मुनियों की तरह वल्कल वस्त्र पहन कर वन के लिए विदा हो गए। यह समय लगभग दोपहर का था। 

पिता के वचन की रक्षा के लिए राम ने चौदह वर्ष तक वन में रहने का निश्चय किया। लेकिन उनके सगे-संबंधी और प्रजाजन अपने प्रिय राजकुमार का बिना किसी अपराध के निर्वासन नहीं होने देना चाहते थे। वे राम को अपनी आँखों से दूर नहीं करना चाहते थे। पत्नी और भाई तो साथ जाने की अनुमति ले कर ही माने।

प्रजाजन उनके रथ को घेर कर चलने लगे। कुछ प्रजाजन तो रथ पर लटक गए थे। रथ के चारों ओर लोगों के होने के कारण सारथी सुमंत्र रथ तेजी से नहीं चला पा रहे थे। लोगों को किसी तरह समझा-बुझा कर रथ से अलग कर वे रथ को तेज गति से हाँकने लगे। कुछ लोग जो इस गति तक नहीं जा सके रुक गए, लेकिन कुछ लोग फिर भी रथ के पीछे दौड़ते चले गए। 

प्रथम रात्रि विश्राम और नगर वासियों को सोते हुए छोड़ कर निकलना

जब साथ आए प्रजाजन राम के बार-बार आग्रह करने पर भी नहीं लौटे तो राम ने वहीं तमसा नदी के किनारे रात्री विश्राम करने के निश्चय किया। क्योंकि लोग दिन भर के थके और दुखी थे। शाम भी होने लगी थी। इस तरह वनवास की प्रथम रात्री तमसा नदी के किनारे बिता। 

Read Also  क्या राम स्त्री विरोधी थे?-भाग 66

राम ने वह रात्री केवल जल पीकर रहने का निश्चय किया। घोड़ो को चारा-पानी देकर सभी ने यथायोग्य संध्योपासन किया। तत्पश्चात सब विश्राम करने लगे। राम माता-पिता और भाई भरत के विषय में सुमंत्र और लक्ष्मण से बहुत देर तक बातें करते रहे। धीरे-धीरे थके हुए पुरवासी सहित सभी लोग सो गए। केवल सुमंत्र और लक्ष्मण सबकी रखवाली के लिए रात भर आपस में बाते करते हुए जागते रहें। राम और सीता भी वृक्ष के पत्तों से बने बिस्तर पर प्रजाजनों से कुछ दूर सोए हुए थे।

सुबह होने से पहले, जब अंधेरा ही था, राम उठे और सुमंत्र से चुपचाप रथ चला लेने के लिए कहा। क्योंकि अगर प्रजाजन जग जाते तो वे कष्ट सह कर भी राम के साथ ही जाते। वे उन्हे अकेले वन नहीं जाने देते।    

राम के आदेशानुसार सुमंत्र ने रथ को कुछ दूर चलाने के बाद विपरीत दिशा में घुमा कर इस प्रकार चलाया ताकि पीछे से आने वाले प्रजा जनों को रथ के पहियों के निशान से उसके जाने के मार्ग का पता नहीं लग सके।

दूसरा रात्रि विश्राम और निषादराज गुह द्वारा राम का सत्कार

दूसरी रात्रि विश्राम निषादों के राजा गुह की राजधानी श्रिंगवेरपुर के पास गंगा नदी के तट पर हुआ। यह निषादों के राजा गुह की राजधानी थी। गुह राम के बड़े भक्त और सखा थे। वे कोशल नरेश को ही अपना अधिपति मानते थे।

गुह को जब राम के आने का समाचार मिला तो वे उनसे मिलने आए। उन्होने राम का बड़ा सत्कार किया। लेकिन राम ने उनके द्वारा लायी गई सामग्री में केवल घोड़ों के लिए चारा छोड़ कर और कुछ नहीं लिया और न ही उनके साथ उनके घर गए।

उस रात्री (वनवास की दूसरी रात्री) भी राम केवल जल पीकर ही रहे। राम और सीता जमीन पर घास की शय्या बना कर सोए। लक्ष्मण उनसे कुछ दूर एक वृक्ष का सहारा लेकर रात भर बैठे जागते रहे। गुह भी उनके साथ रात भर जगे और बातें करते रहे।

Read Also  राम का वनगमन- part 17

अगले दिन यहीं उन्होने गुह से बरगद के वृक्ष का दूध मंगाया और उससे दोनों भाइयों ने जटा बनाया। उन्होने तपस्वी के लिए उचित व्रत लिया। ऐसा करना मुनि के वेश के लिए था, क्योकि ऐसा ही वरदान माँगा गया था।

अब राम कोसल यानि अपने जनपद की सीमा से निकल चुके थे। इसलिए रथ से आगे जाना उचित नहीं था। सुमंत्र भी उनके साथ वन में जाना चाहते थे। किसी तरह राम ने समझा-बुझा कर उन्हे अयोध्या भेजा।

उन्होने गुह से कहा कि उनके लिए इस समय ऐसे वन में रहना उचित नहीं है जहाँ जनपद के लोग आते-जाते हों। इसलिए उन्हे निर्जन वन के आश्रम में रहना होगा। ऐसा कह कर उन्होने गुह से विदा लिया।

गुह और सुमंत्र दोनों को लौट जाने का आदेश देकर गुह द्वारा मंगाए गए नाव से राम, लक्ष्मण और सीता ने गंगा पार किया। तुलसीकृत रामचरित मानस में केवट का प्रसंग है। लेकिन वाल्मीकि रामायण में यह नहीं है।

तीनों को नाव पर विदा कर सुमंत्र तब तक वहीं खड़े रहे जब तक गंगा के पार भी तीनों दिखते रहे। तत्पश्चात वे भारी मन से अयोध्या लौट गए।

राम की कोशल जनपद की सीमा से आगे की यात्रा और तीसरा रात्रि विश्राम

गंगा नदी पार करते समय सीता जी ने गंगा की पूजा की और सकुशल वनवास पूरा कर आने पर पुनः पूजा करने सहित कुछ मनौती मानी।

गंगा के उस पार वत्स देश था। दिन भर वे वत्स देश में ही चलते रहे। शाम को विश्राम के लिए एक वृक्ष के नीचे रुक गए। अतः तीसरी रात्रि वत्स जनपद में ही एक वृक्ष के नीचे बिताया। रात्री को कंद-मूल का आहार किया।

यह उनके वनवास की तीसरी रात और अपने जनपद से बाहर पहली रात थी। श्रिंगवेरपुर चूंकि कोसल जनपद का ही भाग था और उसके नरेश को ही अपना अधिपति मानता था इसलिए वह उनकी राज्य की सीमा में ही था।

Read Also  हनुमान द्वारा लंका में शक्ति प्रदर्शन-भाग 42

राम को यद्यपि अपने भाई पर पूरा विश्वास था फिर भी एक बार परीक्षा कर लेना चाहते थे कि कष्ट से लक्ष्मण का निश्चय तो कहीं कमजोर नहीं हो गया।

इसलिए उन्होने अपने पिता के लिए कुछ कटु वचन कहे। साथ ही कैकेयी से माता कौशल्या और सुमित्रा के अनिष्ट की आशंका भी व्यक्त किया और लक्ष्मण से अयोध्या लौट जाने के लिए कहा। लेकिन लक्ष्मण शान्त रहे। राम के बिना अपना जीवन असंभव बताते हुए वे अयोध्या लौटने के लिए तैयार नहीं हुए।

चौथा रात्रि विश्राम

चौथी रात्रि वे प्रयाग स्थित संगम के निकट भारद्वाज ऋषि के आश्रम में रहे। प्रयाग भी वत्स जनपद में ही पड़ता था। भारद्वाज ऋषि ने उन सब का बहुत स्वागत-सत्कार किया। लेकिन राम ने उनके अपने आश्रम में रहने के प्रस्ताव को यह कह कर अस्वीकार कर दिया कि यह स्थान उनके जनपद से निकट था। अतः अयोध्या से लोग वहाँ आते-जाते रहेंगे। इससे अन्य मुनियों के कार्य में विघ्न होगा। इसलिए वे अन्यत्र कहीं एकांत स्थान पर जाना चाहते थे। 

इस पर ऋषि ने चित्रकूट पर्वत पर निवास करने का सुझाव दिया। अगले दिन ऋषि से आज्ञा लेकर उनके बताए रास्ते से चित्रकूट के लिए चल पड़े।

पाँचवा रात्रि विश्राम

पाँचवी रात उन लोगों ने यमुना के तट पर बिताया। लक्ष्मण जी के विषय में मान्यता है कि वे वनवास के समय कभी नहीं सोए थे। यह एकमात्र उल्लेख है जिसमे राम द्वारा लक्ष्मण को जगाने की चर्चा है। यहाँ दोनों भाइयों ने अपने ही बनाए बेड़े से यमुना नदी को पार किया।

पहला आवास-स्थल चित्रकूट

वे सब अगले दिन चित्रकूट पहुँच गए। छठे दिन चित्रकूट पहुँच कर एक वास योग्य उपयुक्त स्थान देख कर वहाँ पर्ण कुटी यानि पत्ते की झोपड़ी बनाया। वास्तु देव का पूजन कर उस आश्रम अथवा पर्ण कुटी में रहना शुरू किया।

इस प्रकार वनवास के छठे दिन राम पत्नी और भाई के साथ चित्रकूट में कुटी बना कर वनवास की अवधि बिताने लगे।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top