नंदजी और यशोदा जी के पूर्व जन्म की कथा
भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन सुनते हुए राजा परीक्षित ने जिज्ञासा प्रकट किया कि नन्द और यशोदा ने ऐसा क्या पुण्य किया था कि उन्हे भगवान से पुत्रवत स्नेह करने और उनकी बाल लीलाओं से आनंदित होने का सौभाग्य मिला जबकि वसुदेव और देवकी इस सुख से वंचित रहें?
इसके जवाब मे शुकदेवजी ने उन्हें बताया कि नन्द जी पूर्व जन्म में द्रोण नामक एक श्रेष्ठ वसु थे और यशोदा जी उनकी पत्नी धरा थी। जब ब्रह्मा जी ने भगवान के होने वाले अवतार के बारे में बताते हुए सभी देवताओं आदि को ब्रजभूमि में जाकर गोप-गोपिकाओं का रूप लेने के लिए कहा तब वसु द्रोण ने उनसे श्रीकृष्ण में अनन्य प्रेममयी भक्ति का वरदान प्राप्त किया था।
यशोदा को श्रीकृष्ण का विश्वरूप दर्शन
माता यशोदा एक दिन श्रीकृष्ण को बड़े स्नेह से स्तनपान करा रहीं थीं। वात्सल्यवश दूध अपनेआप स्तन से झड़ रहा था। कृष्ण प्रायः दूध पी चुके थे। उसी समय उन्हे जम्हाई आई। माता ने अपने शिशु श्रीकृष्ण के मुख में विस्मयकारी दृश्य देखा। उनके मुख में आकाश, अंतरिक्ष, ज्योर्तिमंडल, दिशाएँ, सूर्य, चंद्रमा, अग्नि, वायु, समुद्र, द्वीप, पर्वत, नदियाँ, वन, और समस्त चराचर प्राणी उन्होने स्थित देखा। समस्त सृष्टि को अपने शिशु के मुख में देख कर यशोदाजी कांपने लगीं और अपनी आँखें बंद कर ली।
माता यशोदा को भगवान के मुख में उनके विराट रूप का पुनः दर्शन
जब कृष्ण थोड़े बड़े हो गए एक बार फिर उन्होने माता को अपना विराट रूप का दर्शन दिया। हुआ यह कि एक दिन बलराम और अन्य ग्वालबालों ने आकर यशोदा जी से शिकायत की कि कन्हैया ने मिट्टी खाई है। माता यशोदा ने डांट कर पूछा कि क्या कन्हैया ने सच में मिट्टी खाई है। कन्हैया ने मना किया और कहा कि शिकायत झूठी है, माँ चाहे तो उसका मुँह देख सकती है।
माँ के कहने पर कन्हैया ने अपने मुँह खोल दिया। यशोदाजी ने देखा कि उनके पुत्र के मुँह मे संपूर्ण चर-अचर जगत विद्यमान है। यहाँ तक कि जीव, काल, स्वभाव, कर्म, उनकी वासना और शरीर आदि के द्वारा विभिन्न स्वरूपों मे दिखने वाला यह संपूर्ण विचित्र संसार, संपूर्ण ब्रज और अपनेआप को भी उन्होने श्रीकृष्ण के नन्हें से खुले हुए मुँह में देखा।
वह सोचने लगी यह कोई स्वप्न है या भगवान की माया, मेरी बुद्धि का भ्रम है या मेरे बालक को जन्मजात कोई योगसिद्धि प्राप्त है? वह श्रीकृष्ण का तत्त्व समझ गईं। तब भगवान ने अपनी पुत्रस्नेहमयी वैष्णवी योगमाया के प्रभाव से माता को यह घटना विस्मृत करवा दिया। उन्होने फिर से श्रीकृष्ण को पुत्रवत प्रेम से गोद में उठा लिया।