खर-दूषण का आक्रमण
सीता पर अकारण हमला करने के लिए उस समय के शास्त्र में विहित दंड के रूप में राम के कहने पर लक्ष्मण ने शूर्पनखा का नाक-कान काट कर उसे कुरूप और घायल कर दिया। वह रोते हुए वहाँ से अपने भाई खर-दूषण के पास भागी और उन्हें युद्ध के लिए उकसाने लगी। यही उसकावा राक्षसों के महाविनाश की पृष्ठभूमि बनी।
प्रसंग इस प्रकार है:
शूर्पनखा द्वारा राक्षस खर से प्रतिशोध के लिए कहना
घायल शूर्पनखा अपने भाई खर के पास गई और राम-लक्ष्मण द्वारा अपने कुरूप किए जाने का सारा वृतांत कह सुनाया।
खर रावण के राक्षस राज्य की उत्तरी प्रभाव सीमा का रक्षक था। राक्षस राज्य की राजनीतिक सीमा तो लंका तक ही थी, लेकिन उनका प्रभाव समस्त दक्षिण भारत तक था। वह पंचवटी के पास के वन में अपने सहायकों के साथ रहता था। उसके राक्षस यहीं से निकल कर उत्तर की तरफ आक्रमण करते थे। लगभग 24 साल पहले ऋषि विश्वामित्र के आश्रम पर हमला इसी तरह का हमला था। राम-लक्ष्मण, जो उस समय किशोरवय राजकुमार ही थे, ने इस हमले का प्रतिकार किया था।
राम द्वारा खर के 14 राक्षसों का वध
बहन का प्रतिशोध लेने के लिए खर ने 14 भयंकर राक्षसों को उन तीनों को मारने के लिए भेजा। ये 14 राक्षस शूर्पणखा के साथ पंचवटी में राम के आश्रम के पास गए। आश्रम के पास जाकर शूर्पनखा ने उन सबको इन तीनों का परिचय दिया। उन्हे राम ने भी देखा। वे उनका मन्तव्य समझ गए। लक्ष्मण को सीता के पास उनकी रक्षा के लिए रख कर वे स्वयं शूर्पनखा के उन सहायकों का अंत करने आए।
लेकिन फिर भी उन्होने पहले हमला नहीं किया। बल्कि राम ने उन सब को अपना परिचय देते हुए पूछा कि वे उन्हे क्यों मारना चाहते हैं। साथ ही उन्हे विकल्प भी दिया कि मरना हो तो रुके अथवा वहाँ से चले जाए। वे सभी तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र लेकर एक साथ राम पर टूट पड़े। लेकिन राम ने उनके अस्त्रों काट कर बाण से उन सब को मार गिराया।
राम द्वारा 14 हजार सैनिकों के साथ खर को हराना
शूर्पनखा फिर खर के पास गई और उन सब के मारे जाने का समाचार सुना कर उसे युद्ध के लिए उकसाने लगी। अब खर ने चौदह हजार सेना के साथ अपने भाई दूषण और अपने सेनापतियों महाकपाल, स्थूलाक्ष, प्रमाथ, त्रिशिरा इत्यादि के साथ पंचवटी युद्ध के लिए कूच किया। कूच करने के साथ ही उन्हे कई प्रकार के अपशकुन हुए लेकिन वे सब इनकी अनदेखी कर पंचवटी पहुँच गए।
राम ने आक्रमण की आशंका होने पर लक्ष्मण को सीता को लेकर पर्वत की गुफा में भेज दिया और स्वयं अकेले ही कवच पहन कर युद्ध के लिए आ डटे। इस युद्ध को देखने के लिए देवता आदि भी आ गए। एक तरफ चौदह हजार सैनिक और दूसरी तरफ एक अकेला व्यक्ति। इसलिए यह युद्ध सबके लिए और अधिक कौतूहल का विषय बन गया।
सैनिकों ने आकर राम को घेर लिया। इतने सैनिकों को देख कर वन्य जीव भागने लगे। राम ने सावधानी से अपने चारो ओर सैनिकों को देख कर उनका निरीक्षण किया। खर अपना रथ राम के आगे ले आया। अचानक सारे राक्षस सैनिक एक साथ विभिन्न अस्त्र-शस्त्र राम पर बरसाने लगे।
राम अद्भुत कौशल का परिचय देते हुए उनके सभी अस्त्र काट कर अपने बाणों से राक्षसों को मारने लगे। यद्यपि वे घायल हो गए थे। शत्रु के कई अस्त्र-शस्त्र उनके शरीर को बिंद्ध कर चुके थे। लेकिन लहूलुहान होने पर भी वे अपने स्थान से हिले नहीं और अत्यंत फुर्ती से बाण चलाते रहे।
बाण चलाने की राम की तीव्रता इतनी थी कि लोगों को केवल उनका धनुष दिखता था। बाण को तूणीर से निकालना, धनुष पर रखना और छोड़ना नहीं दिखता था। वे तरह-तरह के बाणों का प्रयोग कर रहे थे।
अलग-अलग तरह के बाणों के प्रहार से जल्दी ही उन्होने लगभग सारी सेना का सफाया कर दिया। जो कुछ बचे थे, वे डर कर भागने लगे। उन्हे भागते देख कर खर का भाई दूषण, जो कि सेना के पिछले भाग का सेनापतित्व कर रहा था, उन्हे हिम्मत बँधाते हुए आया। लेकिन वह भी मारा गया।
अंत में केवल दो राक्षस बचे रहे त्रिशिरा और खर। इन दोनों को द्वन्द्व युद्ध में राम ने मार डाला।
देवता भी उनका यह पराक्रम देख कर विस्मित रह गए। सब उनकी स्तुति कर अपने लोक को गए। तब तक लक्ष्मण और सीता भी गुफा से निकल कर आश्रम आ गए। आश्रम उस समय युद्ध भूमि बना हुआ था। राम घायल थे, लेकिन सकुशल थे।